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में उन्होंने संस्कृत व्याकरण का अनुशासन किया है, जिसकी संस्कृत व्याकरण के क्षेत्र में अलग महत्ता है। आठवें अध्याय में प्राकृत व्याकरण का निरूपण है। उसकी संक्षिप्त विषयवस्तु द्रष्टव्य है।
आठवें अध्याय के प्रथम पाद में 271 सूत्र हैं। इनमें संधि, व्यंजनान्त शब्द; अनुस्वार, लिंग, विसर्ग, स्वर-व्यत्यय और व्यंजन-व्यत्यय का विवेचन किया गया है। इस पाद का प्रथम सूत्र अथ प्राकृत म् प्राकृत शब्द को स्पष्ट करते हुए यह निश्चित करता है कि प्राकृत व्याकरण संस्कृत के आधार पर सीखनी चाहिये। द्वितीय सूत्र बहुलम् द्वारा हेमचन्द्र ने प्राकृत के समस्त अनुशासनों को वैकल्पिक स्वीकार किया है। इससे स्पष्ट है कि हेमचन्द्र ने न केवल साहित्यिक प्राकृतों को, अपितु व्यवहार की प्राकृत के रूपों को ध्यान में रखकर भी अपना व्याकरण लिखा है। इस पद के तीसरे सूत्र आर्षम् 8/1/3 द्वारा ग्रन्थकार ने आर्षप्राकृत और सामान्य प्राकृत में भेद स्पष्ट किया है। इसके आगे के सूत्र स्वर आदि का अनुशासन करते हैं। जिस बात को प्राचीन वैयाकरण चंड, वररुचि आदि ने संक्षेप में कह दिया था, हेमचन्द्र ने उसे न केवल विस्तार से कहा है, अपितु अनेक नये उदाहरण भी दिये हैं। इस तरह प्राकृत भाषा के विभिन्न स्वरूपों का सांगोपांग अनुशासन हेमव्याकरण में हो सका है।
द्वितीय पाद के 218 सूत्रों में संयुक्त व्यंजनों के परिवर्तन, समीकरण, स्वरभक्ति, वर्णविपर्यय, शब्दादेश, तद्धित, निपात और अव्ययों का निरूपण है। यह प्रकरण आधुनिक भाषाविज्ञान की दृष्टि से बहुत उपयोगी है। हेमचन्द्र ने संस्कृत के कई द्वयअर्थ वाले शब्दों को प्राकृत में अलग-अलग किया है, ताकि भ्रान्तियाँ न हों। संस्कृत के क्षण शब्द का अर्थ समय भी है और उत्सव भी। हेमचन्द्र ने उत्सव अर्थ में छणो (क्षणः) और समय अर्थ में खणो (क्षणः) रूप निर्दिष्ट किये हैं। इसी तरह हेम ने अव्ययों की भी विस्तृत सूची इस पाद में दी है। तृतीय पाद में 182 सूत्र हैं, जिनमें कारक, विभक्तियों, क्रिया-रचना आदि सम्बन्धी नियमों का कथन किया गया है। शब्दरूप, क्रियारूप और कृत प्रत्ययों का वर्णन विशेष रूप से ध्यातव्य है। वैसे प्राकृत प्रकाश के समान ही इसका विवेचन हेम ने किया है, कारक व्यवस्था पर अच्छा प्रकाश डाला है। हेमप्राकृत
358 0 प्राकृत रत्नाकर