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________________ सर्वप्रथम उल्लेख इसी शिलालेख की दशवीं पंक्ति में मिलता है। इस तरह प्राकृत के शिलालेख भारत के सांस्कृतिक इतिहास के लिए महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रदान करते हैं। 399. शिवार्य आचार्य शिवकोटि अथवा शिवार्य प्राचीन दिगम्बर आचार्य थे। जिन्होंने भगवती आराधना नामक शौरसेनी प्राकृत ग्रन्थ लिखा है । इस ग्रन्थ का नाम आराधना अथवा मूलाराधना भी प्राप्त होता है। शिवार्य को अनेक दिगम्बर आचार्यों ने आदरपूर्वक स्मरण किया है। इससे ज्ञात होता है कि शिवार्य और उनका ग्रन्थ दोनों की अच्छी प्रसिद्धि थी। श्री पंडित नाथूराम प्रेमी शिवार्य को यापनीय संघ का आचार्य स्वीकार करते हैं और उनके गुरु का नाम सर्वगुप्त मानते हैं । विद्वानों ने शिवार्य का समय ई. सन् की दूसरी-तीसरी शताब्दी माना है । इनके ग्रन्थ भगवती आराधना पर 7वीं-8वीं शताब्दी में अपराजितसूरी द्वारा टीका लिखी जा चुकी थी । भगवती आराधना ग्रन्थ के अन्त में इसके रचयिता ने अपना परिचय दिया है। उससे इतना ही ज्ञात होता है कि आर्य जिननन्दि गणि, सर्वगुप्त गणि और आचार्य मित्रनन्दि के पादमूल में सम्यक् रूप से श्रुत और अर्थ को जान कर हस्तपात्र में आहार करने वाले शिवार्य ने पूर्वाचार्यकृत रचना को आधार बनाकर यह आराधना रची है । यथा अज्जजिर्णेदिगणि- सत्वगुत्तगणि-अज्जमित्तणंदीणं । अवगामिय पादमूले सम्मं सुत्तं च अत्थं च ॥ 2159 ॥ पुव्वायरियणिबद्धा उवजीवित्ता इमा ससत्तीए । आराधना सिवज्जेणपाणिदलओइणा रइदा ॥ 2160 ॥ गाथा से यह ज्ञात होता है कि ग्रन्थकार का नाम शिवार्य था और जिननन्दि, सर्वगुप्त और मित्रनन्दि उनके गुरु थे। उनके पादमूल में हीं उन्होंने श्रुत का अध्ययन किया था। मुनि आचार पर शिवार्य की भगवती आराधना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण कृति है। शिवार्य पाणितल भोजी होने के कारण दिगम्बर परम्परा के अनुयायी हैं । आर्य शब्द एक विशेषण है । अतः पं. नाथूराम प्रेमीजी के अनुमान के अनुसार प्राकृत रत्नाकर 0 341
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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