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________________ इस पुस्तकालय में लगभग 8000 प्रकाशित पुस्तकें एवं 1500 हस्तिलिखित पाण्डुलिपियाँ हैं। 33. आगमों की भाषा __ जैनागमों की मूल भाषा अर्धमागधी है। यह देववाणी मानी गई है। भगवतीसूत्र में गौतम द्वारा यह प्रश्न करने पर कि देव किस भाषा में बोलते हैं? भगवान् महावीर द्वारा उत्तर दिया गया कि देव अर्धमागधी भाषा में बोलते हैं तथा सभी भाषाओं में अर्धमागधी भाषा श्रेष्ठ व विशिष्ट है- गोयम! देवाणं अद्धमागहीए भासाए भासंति..... (5, 4, 24) समवायांग व औपपातिकसूत्र के अनुसार भी तीर्थंकर अर्धमागधी भाषा में उपदेश देते हैं। इसकी व्याख्या करते हुए आचार्य हरिभद्र कहते हैं कि चरित्र साधना-आराधना करने के इच्छुक मंद बुद्धि स्त्री पुरुषों पर अनुग्रह करने के लिए सर्वज्ञ भगवान् आगमों का उपदेश प्राकृत में देते हैं। प्रज्ञापनासूत्र में इस भाषा को बोलने वाले को भाषार्य कहा है। मगध के अर्धभाग में बोली जाने के कारण तथा मागधी व देशज शब्दों के सम्मिश्रण के कारण यह अर्धमागधी कहलाती है। 34. आगमिक-व्याख्या साहित्य - जैन आगम साहित्य में अत्यंत सूक्ष्म व गंभीर विषयों का सूत्र रूप में निरूपण हुआ है। सामान्यतः आगमों के समस्त गूढ रहस्यों और उनके विषयों को सीधे सम्यक प्रकार से समझना संभव नहीं है, अतः इन आगमिक रहस्यों व सम्यक विषयों को समझने के लिए जैनाचार्यों द्वारा इनकी विस्तार से व्याख्या प्रस्तुत कीगई। इसी परम्परा में विविधआगमिक-व्याख्या-साहित्य का निर्माण हुआ। जैनागमों पर पाँच प्रकार का व्याख्या साहित्य उपलब्ध है। 1. नियुक्ति 2. भाष्य 3.चूणि 4. टीका 5. टब्बा एवं लोक भाषा में लिखित साहित्य। 35. आदिम प्राकृत प्राकृत भाषा के उद्गम एवं ऋग्वेद की छान्दस् का तुलनात्मक अध्ययन कर प्राच्य भाषाविद् पं. चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने प्रकृतिजनानामिदंप्राकृतम् की पूर्वागत परिभाषा के अनुसार अपना शोध-निष्कर्ष यह निकाला कि ऋग्वेदपूर्वकालीन जनसामान्य की आदिम प्राकृत से विकसित-भाषा ही वह छान्दस् है, जिसमें कि प्राकृत रत्नाकर 0 25
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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