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सेतुबन्ध शास्त्रीय महाकाव्य । वाक्पतिराजकृत गउडवहो प्रशस्ति महाकाव्य की
में आता है तो प्रस्तुत कौतुहल प्रणीत लीलावईकहा रोमाण्टिक महाकाव्य अथवा कथामहाकाव्य की श्रेणी का प्रतिनिधित्व करता है । प्रेमकथा की आधारशिला पर महाकाव्योचित शैली और विशेषताओं से इसे कवि ने अलंकृत किया है। इस सम्बन्ध में डॉ. नेमिचन्द शास्त्री का यह कथन सटीक प्रतीत होता है
अलंकृति, वस्तु व्यापार वर्णन, प्रेम की गम्भीरता और विजय की महत्ता स्थापित करने का महाउद्देश्य, रसों और भाव सौन्दर्य की अभिव्यक्ति उदात्तशैली एवं महाकाव्योचित गरिमा ऐसे तत्व हैं, जिसके कारण इसे महाकाव्य मानना तर्क संगत है हिन्दी के प्रेमाख्यानक काव्यों की शैली का विकास प्राकृत के इसी कोटि के काव्यों से हुआ है ।
लीलावईकहा में प्रतिष्ठान के राजा सातवाहन और सिंहल देश की राजकुमारी लीलावती की प्रेमकथा वर्णित है । नायिका के नाम पर ही ग्रन्थ का नाम लीलावईकहा रखा गया है। इस काव्य में कुल 1800 प्राकृत गाथाएँ हैं, जो अनुष्टुप छन्द के नाम से जानी जाती हैं । इस ग्रन्थ का सम्पादन डॉ. ए. एन.. उपाध्ये ने किया है। इस काव्य पर लीलावती कथा - वृत्ति नामक एक संस्कृत टीका भी किसी अज्ञात टीकाकार द्वारा लिखी गयी है । ये टीकाकार श्वेताम्बर जैन, गुजरात निवासी एवं लगभग 12-14 वीं शताब्दी के थे । 361. लोक विभाग
तिलोयपणत्ति के कर्त्ता यतिवृषभ ने लोक विभाग का अनेक जगह उल्लेख किया है, लेकिन यह ग्रंथ कब और किसके द्वारा रचा गया इसका कुछ पता नहीं लगता । सिंहसूर के संस्कृत लोकविभाग के अन्त में दी गई प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि सर्वनन्दि के प्राकृत ग्रन्थ की भाषा का परिवर्तन करके सिंहसूरि ने अपने संस्कृत लोक विभाग की रचना की। इस ग्रन्थ ईसवी सन् की छठी शताब्दी से पूर्व होने का अनुमान किया जाता है।
362. वज्जालग्गं
वज्जालग्ग विभिन्न कवियों द्वारा रचित प्राकृत सुभाषितों का संग्रह ग्रन्थ है । वज्जालग्ग के संकलन कर्त्ता महाकवि जयवल्लभ हैं। इस मुक्तककाव्य का
308 0 प्राकृत रत्नाकर