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________________ कर्ता धर्मसेनगणि महत्तर के अनुसार वसुदेव ने 100 वर्ष भ्रमण कर 100 स्त्रियों के साथ विवाह किया, अतएव वसुदेवहिडि वस्तुतः 100 लंभों की रचना होनी चाहिये, किन्तु उसमें केवल 29 ही लंभ है शेष लंभों की उन्होंने इसलिये उपेक्षा कर दी कि उनमें कथानकों के लंबे वर्णन थे। ऐसी स्थिति में धर्मसेनगणि ने इस अपूर्ण कृति को पूर्ण करने के लिये मज्झिमखंड के माध्यम से शेष 71 लंभों की रचना की। वसुदेवहिंडि की भाँति यहाँ भी नायक वसुदेव अपनी कथा स्वयं कहते हैं। यह रचना महाराष्ट्री प्राकृत में लिखी गई है। जैन कथाकारों को अपने धार्मिक आख्यानों को लोकप्रिय बनाने के लिये जहाँ-तहाँ शृंगारपूर्ण प्रेमकथाओं का आश्रय लेना पड़ा है। इस बात को स्पष्ट करते हुए धर्मदासगणि महत्तर ने लिखा है लोग नहुष नल धुधुमार, निहस पुरुरव मान्धाता राम-रावण जनमेजय राम कौरव पुंडसुत नरवाहनदत्त आदि लौकिक प्रेमाख्यानों को सुनकर इनमें इतना एकान्त रस लेते हैं कि धर्मकथाओं को सुनने की इच्छा तक भी उनके मन में शेष नहीं रहती, ऐसे ही जैसे कि ज्वरपित्त से जिसका मुंह कडुआ हो गया है ऐसे रोगी को गुड़ शक्कर या खांड भी कड़वे लगने लगते हैं। ऐसी दशा में जैसे कोई वैद्य अमृतरूप औषध पान से परांडगमुख रोगी को मनोभिलाषित औषधपान के बहाने अपनी औषधि पिला देता है, उसी प्रकार कामकथा में रत पाठकों के मनोरंजन के लिये शृंगारकथा के बहाने धर्मकथा सुनानी चाहिये। वसुदेवहिण्डी का विश्व कथा-ग्रन्थों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें अनेक ज्ञानवर्धक एवं मनोरंजक आख्यानों, कथानकों, चरितों एवं अर्ध-ऐतिहासिक वृत्तों का संकलन है। यह ग्रन्थ अति प्राचीन है। इसका रचना काल अनुमानतः चौथी शताब्दी है। प्रस्तुत ग्रन्थ में कृष्ण के पिता वसुदेव के भ्रमण-वृत्तांत का वर्णन किया गया है। प्रसंगवश अनेक अवान्तर कथाएँ भी इसमें आई हैं। इस ग्रन्थ में रामचरित, कौरव एवं पाण्डवों के कथानक आदि को भी संक्षिप्त रूप में गुम्फित किया गया है। अनेक लौकिक कथाएँ भी वर्णित हैं। यही कारण है कि यह ग्रन्थ कथा, चरित एवं पुराण तीनों ही विधाओं के तत्त्वों को अपने में समायोजित किये हुए हैं। सौ लम्भक वाले इस ग्रन्थ के कथानकों की सरसता में पाठक स्वाभाविक प्राकृत रत्नाकर 0 281
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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