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________________ रूप में प्रतिष्ठित मानी जा सकती है। आर्यों के सम्पर्क और प्रभाव से प्राचीन प्राकृतों से वैदिक भाषा आदि विकसित हुई तथा मगध में मागधी प्राकृत आदि का विकास हुआ। मगध के महापुरुषों ने, भगवान् महावीर ने अर्द्धमागधी प्राकृत में और भगवान बुद्ध ने पालि (मध्यप्रदेश की भाषा) में अपने उपदेश दिए। क्रमशः अन्य प्राकृतें विकसित हुई और उनमें ग्रन्थ आदि लिखे गये। ___ वैदिक युग में एक ओर ईरानी और दूसरी ओर प्राकृत बोलियाँ जनप्रचलित थीं। वैदिक भाषा, प्राकृत बोलियों का प्रचलित रूप नैसर्गिक स्वरूप लिए हुए था, उसमें कृत्रिमता नहीं थी। इसलिए उन सब को भारतवर्ष की प्रथम प्राकृत कहा जा सकता है। विद्वानों ने वैदिक युग की इन्हीं प्राकृत बोलियों से भारत की अन्य प्राचीन और अर्वाचीन भाषाओं का विकास माना है। आधुनिक भाषाविद स्वीकार करते हैं कि वैदिक युग की बोलचाल की भाषा प्राकृत ही थी, जो कुछ बातों में संहिताओं की साहित्यिक भाषा से भिन्न थी। भारतीय आर्यभाषा के विकास को विद्वानों ने अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से तीन प्रमुख कालों में विभक्त किया है (क) प्राचीन भारतीय आर्य भाषाकाल (1600 ई. पू.) (ख) मध्यकालीन भा. आर्य भाषाकाल (1600 ई. पू. से 1000 ई.पू. तक) (ग) आधुनिक भा. आर्य भाषाकाल (1000 ई. से वर्तमान युग) प्राकृत भाषा का सम्बन्ध भारतीय आर्यभाषा के इन सभी कालों से रहा है। वैदिक युग के साथ प्राकृत जनबोली एवं कथ्य भाषा के रूप में रही। मध्ययुग में प्राकृत दर्शन-चिन्तन एवं साहित्य की भाषा बनी तथा आधुनिक युग में प्राकृत अपभ्रंश के माध्यम विभिन्न प्रान्तीय भाषाओं के साथ जुड़ी हुई है। 324. भाष्य साहित्य नियुक्ति साहित्य सांकेतिक भाषा में लिखा गया था। अतः आगमों के गूढ़ सूत्रों के तात्पर्यों को समझने के लिए तथा नियुक्तियों में छिपे अर्थ- बाहुल्य को स्पष्ट करने के लिए जो आगम व्याख्याएँ लिखी गई, वे भाष्य साहित्य के रूप में विख्यात हुई हैं। भाष्य भी प्राकृत गाथाओं में लिखे गये हैं तथा नियुक्तियों की तरह भाष्य भी संक्षिप्त ही हैं। भाष्य-साहित्य में अर्धमागधी प्राकृत के साथ-साथ प्राकृत रत्नाकर 0 279
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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