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________________ मेड़ता और छत्रपल्ली में रहकर भवभावना वररयणमालिया श्रेष्ठरत्नमाला और उसकी स्वोपज्ञ वृत्ति की रचना की है। भवभावना में 531 गाथायें हैं, जिनमें 12 भावनाओं का वर्णन है। इन भावनाओं में मुख्य भावना है भवभावना यानी संसारभावना जिसका 322 गाथाओं में विस्तृत विवेचन किया गया है, अन्य 11 भावनाओं का निरूपण प्रसंगवश संक्षेप में किया है। ग्रंथ का अधिकांश भाग प्राकृत गाथाओं में लिखा गया है। बीच बीच में गद्यमय संस्कृत का भी उपयोग किया है, अपभ्रंश के पद्य भी हैं। ग्रन्थ के पद्यात्मक स्वोपज्ञ विवरण में अनेक धार्मिक व लौकिक कथायें गुंफित हैं। कितने ही चित्रण बड़े स्वाभाविक और सुंदर बन पड़े हैं। प्रेम, घृणा, शत्रुता मायाजाल, कपट, लोभ, क्रोध, कृतघ्नता अमीरीगरीबी, स्त्री-पुरुष संबंध स्वामी-दास संबंध आदि का कुशल चित्रण किया गया है। प्राकृत और संस्कृत की अनेक उक्तियाँ यहाँ दी हुई हैं। 322. भावसंग्रह ___ भावसंग्रह में दर्शनसार की अनेक गाथायें उद्धृत हैं। इसमें 701 गाथायें हैं। सबसे पहले स्नान के दोष बताते हुए स्नान की जगह तप और इन्द्रियनिग्रह से जीव की शुद्धि बताई है। फिर मांस के दूषण और मिथ्यात्व के भेद बताये गये हैं। चौदह गुणस्थानों के स्वरूप का यहाँ प्रतिपादन है। यह रचना 12-13वीं शताब्दी की है और इसके कर्त्ता देवसेन दर्शनसार के कर्ता देवसेन गणि से भिन्न हैं। 323. भाषा परिवार एवं प्राकृत भारत की प्राचीन भाषाओं में प्राकृत भाषाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। लोक भाषाओं के रूप में प्रारम्भ में इनकी प्रतिष्ठा रही और क्रमशः ये साहित्य और चिन्तन की भाषाएँ बनीं। प्राकृत प्राचीन भारत के जीवन और साहित्यिक जगत् की आधार भाषा है। जनभाषा से विकसित होने के कारण और जनसामान्य की स्वाभाविक (प्राकृतिक) भाषा होने के कारण इसे प्राकृत भाषा कहा गया है। प्राकृत भाषाओं में शौरसेनी एवं मागधी प्राकृत के नाम प्राचीन समय से प्रचलित रहे हैं। सूरसेन प्रदेश (काशी, मथुरा, अयोध्या) का उल्लेख तीर्थंकरों की कर्मभूमि और महाभारत, रामायण आदि के नायकों की जीवन-स्थली के रूप में प्राप्त है। अतः सूरसेन प्रदेश की भाषा शौरसेनी प्राकृत इस देश की मूल भाषा के 278 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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