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________________ सम्यग्ज्ञान-दर्शन-चारित्र एवं तप रूप साधना को आराधना शब्द से परिभाषित किया है। इस ग्रन्थ में मुख्य रूप से मरणसमाधि का कथन है। ग्रन्थ के आरम्भ में 17 प्रकार के मरण बताये गये हैं। इनमें से पंडितमरण, पंडितमरण और बालपंडितमरण को श्रेष्ठ कहा है। इसके अतिरिक्त इसमें आर्यिकाओं के लिए संघ-नियम, अचेलक्य, नाना देशों में विहार करने के गुण, संलेखना, ध्यान, लेश्या, बारह भावनाओं, आलोचना के गुणदोष, पंचनमस्कार मंत्र की महत्ता, मुनियों के मृतक संस्कार आदि का भी निरूपण हुआ है। प्रसंगवश गजकुमार, भद्रबाहु, विद्युच्चर, अश्वघोष, धर्मघोष आदि साधुओं की कथाएँ भी वर्णित हैं। 317. भद्रबाहु नियुक्तिकार ___ नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु माने जाते हैं। ये चतुर्दश-पूर्वधर छेदसूत्रकार भद्रबाहु से पृथक हैं, क्योंकि नियुक्तिकार भद्रबाहु ने दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति, पन्चकल्पनियुक्ति में छेदसूत्रकार भद्रबाहु को नमस्कार किया है। यदि छेदसूत्रकार और नियुक्तिकार एक ही भद्रबाहु होते तो नमस्कार का प्रश्न ही नहीं उठता। नियुक्तियों में इतिहास की दृष्टि से भी ऐसी अनेक बातें आई हैं जो श्रुतकेवली भद्रबाहु के बहुत काल बाद घटित हुई। ___नियुक्तिकार भद्रबाहु प्रसिद्ध ज्योतिर्विद वराहमिहिर के भ्राता थे, जो अष्टांग निमित्त और मंत्रविद्या के निष्णात विद्वान थे, जिन्होंने उपसर्गहरस्तोत्र, भद्रबाहुसंहिता और दस नियुक्तियाँ लिखी हैं। विज्ञों का ऐसा मन्तव्य है कि भद्रबाहुसंहिता जो वर्तमान में उपलब्ध है वह कृत्रिम है। असली भद्रबाहुसंहिता वर्तमान में उपलब्ध नहीं है। नियुक्तिकार भद्रबाहु का समय विक्रम सम्वत् 562 के लगभग है और नियुक्तियों का रचना समय विक्रम सम्वत् 500-600 के मध्य का है। 318. भद्रेश्वरसूरि भद्रेश्वरसूरि महत्त्वपूर्ण कृति प्राकृत कहावली के रचयिता हैं। ये अभयदेवसूरि के गुरु थे। अभयदेव के शिष्य अषाढ़ का समय वि. सं. 1248 है। अतः भद्रेश्वर का समय 12वीं शताब्दी के मध्य के आसपास मान सकते हैं। परन्तु इस ग्रन्थ की भाषा चूर्णियों की भाषा के बहुत समीप है। प्राकृत रत्नाकर 0275
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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