________________
प्राकृत संस्थान मैसूर विश्वविद्यालय मैसूर से शोध संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस प्राकृत संस्थान के अन्तर्गत कई विभाग संचालित हैं । जैसे- प्राकृत शिक्षण एवं परीक्षा विभाग, समृद्ध ग्रंथालय, शोध प्रकल्प, पाण्डुलिपि संरक्षण संग्रहालय, प्राकृत धवलत्रय कन्नड़ अनुवाद एवं संपादन विभाग, प्राकृत हिन्दी प्राकृत अपभ्रंश विभाग, एन.एम.एम. प्रोजेक्ट, प्राकृत-कन्नड़-हिन्दी अंग्रेजी शब्दकोश सम्पादन विभाग, प्राकृत तथा विश्वकोश विभाग इत्यादि। इस राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थान की स्थापना 1991 में जगद्गुरू कर्मयोगी स्वस्तिश्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामीजी के द्वारा हुई थी। इस संस्थान का उद्घाटन 2 दिसम्बर 1993 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम डॉ. शंकर दयाल शर्मा के द्वारा सम्पन्न हुआ। इस संस्थान के विकास हेतु परमपूज्य राष्टसंत आचार्य श्री 108 विद्यानन्द जी महाराज, परमपूज्य आचार्य श्री 108 वर्धमानसागर जी महाराज एवं परमपूज्य आचार्य श्री 108 देवनन्दी जी महाराज एवं अन्य प्रमुख मुनि संघों का आशीर्वाद प्राप्त है। • इस बाहुबली प्राकृत विद्यापीठ एवं प्राकृत संस्थान का प्रमुख उद्देश्य तीर्थंकरों की दिव्यध्वनि स्वरूप प्राकृत भाषा के मूल ग्रंथों का संरक्षण सम्पादन, अनुवाद, प्रकाशन द्वारा प्रचार-प्रसार करना है। तीर्थंकर महावीर के दिव्य उपदेश गणधरों एवं आचार्यों द्वारा लोक-भाषा प्राकृत में संरक्षित किये गये हैं। प्राकृत भाषा भारत की प्राचीनतम भाषा है जिसका सम्बन्ध भारत की सभी भाषाओं के साथ जुड़ा है। अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्त, कर्मसिद्धान्त आदि मानवीय मूल्यों और शिल्प, वास्तु आयुर्वेद, भूगोल, खगोल, ज्योतिष आदि विज्ञानों तथा कलाओं का साहित्य भी प्राकृत भाषा में है। अतः ऐसी प्राकृत भाषा का जनसमुदाय को शिक्षण प्रदान करना और उसके साहित्य को प्रकाश में लाना इस संस्थान का प्रमुख उद्देश्य है। इसी के लिए संस्थान में विभिन्न प्राकृत पाठ्यक्रम और शोध-कार्य की प्रवृत्तियाँ संचालित हैं। 312. बृहत्कल्प(कप्पो)
बृहत्कल्प का अर्धमागधी आगम के छेदसूत्रों में गौरवपूर्ण स्थान है। बृहत्कल्प कल्पसूत्र से भिन्न साध्वाचार का स्वतंत्र ग्रन्थ है। अन्य छेदसूत्रों की तरह इसमें भी श्रमणों के आचार-विषयक विधि-निषेध, उत्सर्ग-अपवाद, तप,
प्राकृत रत्नाकर 0271