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गांधर्व, नाट्य आदि की शिक्षा देने की व्यवस्था के उल्लेख कथाकोषप्रकरण में आते हैं। इस प्रकार की लोक कलाओं द्वारा प्रजा मनोरंजन करने वाले कितने ही लोगों के नाम आते हैं। उदाहरण के लिए नट, नर्तक जल्ल (रस्सी पर खेल दिखाने वाले) मल्ल, मोष्टिक, विदूषक, कथक, लंख (उछलने कूदने वाले), मंख (चित्रपट दिखाने वाले), लूणइल्ल, तुम्बवीणिक भोजक और मागध के नाम लिए जा सकते हैं। मंखों की परम्परा तो आज भी पट दिखाने वाले भोमा लोगों से की जा सकती है। 305. प्राकृत वाक्यरचना बोध
प्रसिद्ध मनीषी आचार्य महाप्रज्ञ ने आचार्य हेमचन्द्र के व्याकरण के अनुसार प्राकृत वाक्य रचना बोध नामक ग्रन्थ 1991 में प्रकाशित किया है। इसमें प्राकृत व्याकरण के 1114 सूत्र नियम के नाम से हिन्दी अनुवाद एवं उदाहरण सहित वर्णित हैं। यह ग्रन्थ अभ्यास के माध्यम से प्राकृत व्याकरण का ज्ञान कराता है, किन्तु इसके लिए संस्कृत भाषा का विशेष ज्ञान होना अपेक्षित है। 306. प्राकृत साहित्य में लोक चिकित्सा
प्राकृत साहित्य में आयुर्वेद से सम्बन्धित पर्याप्त सामग्री उपलब्ध होती है, रोगों के प्रकार, रोगोत्पत्ति के कारण व्याधियों के देशी उपचार, घावों के भरने के. लिए विविध घृत और तेल का प्रयोग, छोटे-मोटे रोगों के इलाज के लिए घरेलू चिकित्सा आदि के विषय पर डॉ. जे.सी. जैन ने विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की है। प्राकृत साहित्य में इस सबके उल्लेख का एक कारण यह है कि जैन साधुसाध्वियां हमेशा पैदल प्रवास करते थे। रास्ते चलते जो छोटे-छोटे रोग या ब्रण उन्हें होते थे, गांववासी देशी दवाइयों से उनका इलाज कर देते थे। अतः साहित्य सृजन के समय इन सब देशी उपचारों का उसमें उल्लेख हो गया है।
इस प्रकार साहित्य में लोक-संस्कृति के सभी पक्षों-लोक साहित्य, भाषा, जीवन, विश्वास, कला, चिकित्सा आदि से सम्बन्धित पर्याप्त सामग्री उपलब्ध होती है। पालि और अपभ्रंश साहित्य की खोज से इसमें और वृद्धि हो सकती है। लोक संस्कृति की सामग्री की विविधता और प्रचुरता को देखते हुए यह निःसन्देह रूप से कहा जा सकता है कि प्राकृत साहित्य का लोकतात्विक अध्ययन शोध
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