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का वर्णन है। देशी व्यापार के अतिरिक्त विदेशों से व्यापार भी उन्नत अवस्था में था।अतः समाज की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। वाणिज्य व्यापार एवं कृषि आदि के इतिहास के लिए इन कथाओं में पर्याप्त सामग्री प्राप्त है। समुद्र-यात्रा एवं सार्थवाह-जीवन के सम्बन्ध में तो इन जैन कथाओं से ऐसी जानकारी मिलती है, जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं है। बुद्धकालीन समाज की तुलना के लिए भी यह सामग्री महत्त्वपूर्ण है।
291. प्राकृत साहित्य में राज्य-व्यवस्था
प्राकृत साहित्य में राज्य-व्यवस्था सम्बन्धी विविध जानकारी उपलब्ध है। चम्पा के राजा कूणिक (अजातशत्रु) की कथा से उसकी समृद्धि और राजकीय गुणों का पता चलता है। राज्यपद वंश-परंपरा से प्राप्त होता था। राजा दीक्षित होने के पूर्व अपने पुत्रों को राज्यगद्दी पर बैठाता था। किन्तु उदायण राजा की कथा से ज्ञात होता है कि उसने अपने पुत्र के होते हुए भी अपने भानजे को राजपद सौंपा था। नन्दीवर्धन राजकुमार की कथा से ज्ञात होता है कि यह अपने पिता के विरुद्ध षड्यन्त्र करके राज्य पाना चाहता था। राजभवनों एवं राजा के अन्तःपुरों के भीतरी जीवन के दृश्य भी इन कथाओं में प्राप्त हैं । अन्तकृदशा में कन्या अन्तःपुर का भी उल्लेख है। राज्य-व्यवस्था में राजा युवराज, मन्त्री सेनापति, गुप्तचर, पुरोहित श्रेष्ठी आदि व्यक्ति प्रमुख होते थे। डॉ. जगदीश चन्द्र जैन ने आगम कथा साहित्य के आधार पर प्राचीन राज्य व्यवस्था पर अच्छा प्रकाश डाला है। अपराध एवं दण्ड व्यवस्था के लिए इस साहित्य में इतनी सामग्री उपलब्ध है कि उससे प्राचीन दण्ड व्यवस्था पर स्वतन्त्र ग्रन्थ लिखे जा सकते हैं। जैन कथाकारों ने राजकुलों एवं राजाओं का अपनी कथाओं के उल्लेख प्रभाव उत्पन्न करने के लिए किया है। किन्तु कई स्थानों पर तो उनका ऐतिहासिक महत्व भी है। 292. प्राकृत साहित्य में धार्मिक मत-मतान्तर ___ आगमों की साहित्य में जैन धर्म के विविध आयाम तो उद्घाटित हुए हैं, साथ ही अन्य धर्मों एवं मतों के सम्बन्ध में इनसे विविध जानकारी प्राप्त होती है। आद्रकुमार की कथा से शाक्य श्रमणों के सम्बन्ध में सूचना मिलती है। धन्ना सार्थवाह की कथा में विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले परिव्राजकों के
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