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________________ आधार होता है, उसे अधिकरण कहते हैं। यह आधार अनेक प्रकार का हो सकता है। सभी आधारों में सप्तमी विभक्ति के प्रत्ययों का प्रयोग शब्द के साथ किया जाता है, इसलिए इसको अधिकरण कारक कहते हैं। सामान्तया निम्न आधारों में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता हैरुक्खे परिखणो वसंति - वृक्ष पर पक्षी वसते हैं। आसणे अवरि पोत्थअं अत्थि = आसन के ऊपर पुस्तक है। तिलेसु तेलं अस्थि तिलों में तेल है। हियए करुणा अत्थि हृदय में करुणा है। धम्मे अहिलासा अत्थि धर्म में अभिलाषा है। मोक्खे इच्छा अत्थि मोक्ष में इच्छा है। छत्तेसु जयकुमारो णिउणो = छात्रों में जयकुमार निपुण है। . मम समणेसु आयरो अत्थि - मेरा श्रमणों में आदर है। 283. प्राकृत रचना सौरभ ___डॉ. कमलचन्द सोगाणी ने वर्तमान समय में अनेक प्राकृत एवं अपभ्रंश व्याकरण के ग्रन्थों की रचना की है। उनकी कृति प्राकृत रचना सौरभ आधुनिक प्राकृत व्याकरण-ग्रन्थों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। हिन्दी माध्यम से इस ग्रन्थ में महाराष्ट्री, शौरसेनी एवं अर्धमागधी इन तीनों ही प्राकृतों को विभिन्न विकल्पों सहित एक साथ सीखने का प्रयत्न किया गया है। विभिन्न पाठों को इस प्रकार क्रम से रखा गया है कि जिज्ञापुष्पाठक बिना रटे स्वतः ही प्राकृत भाषा के विभिन्न नियमों से अवगत होता चला जाता है। डॉ. सोगाणी की प्राकृत रचना सौरभ की सम्पूर्णता उनकी अगली कृति प्राकृत अभ्यास सौरभ में है। प्राकृत अभ्यास सौरभ की नवीन शैली एवं इसका आधुनिक प्रस्तुतीकरण में डूबा पाठक स्वतः अभ्यास करते-करते प्राकृत सीख जाता है। प्राकृत भाषा को सीखने के लिए ये पुस्तकें अत्यंत उपयोगी हैं। आगे इसी क्रम में प्रौढ़ प्राकृत रचना सौरभ (भाग 1) की रचना कर लेखक ने संस्कृत भाषा में रचित प्राकृत व्याकरण के संज्ञा एवं सर्वनाम सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही संख्यावाची शब्दों एवं उनके विभिन्न प्रकारों को समझाने का प्रयास भी किया है। सूत्रों का विश्लेषण एक प्राकृत रत्नाकर 0245
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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