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________________ विशिष्ट प्रयोग पंचमी = से (विलग) . णिच्छयदो चिंतेज = निश्चय से विचार करना चाहिए। णिच्छयदो विण्णेयं = निश्चय से समझा जाना चाहिए। वत्थुदो ण हि दुबंधो = वास्तव में वस्तु से बंध नहीं होता है। __= व्यवहार से जीव आदि तत्त्वों का श्रद्धान् सम्यक्त्व है। सद्दहणं सम्मत्तं णाणगुणेहिं विहीणा ते = वे ज्ञान गुण से रहित हैं। मोक्खमगगस्स ण वि- = मोक्षमार्ग से कभी विचलित नहीं होता। चुक्कदि विसए विरत्त चित्तो जोई = विषय से विरक्त चिन्तन वाला योगी। सम्बन्ध कारक षष्ठी = का, के, की जहाँ सम्बन्ध व्यक्त करना हो वहाँ षष्ठी विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। अन्य प्रसंगों में, विभिन्न शब्दों के योग में भी षष्ठी होती है। यथा -- सो कस्स हेउस्स आगदो? = वह किस हेतु के लिए आया है? सो मादाए सुमरदि = वह माता को स्मरण करता है। मादाए सुहं भोदु = माता का कल्याण हो। प्राकृत में चतुर्थी एवं षष्ठी विभक्ति के शब्द रूप एक समान बनते हैं। यथाविशिष्ट प्रयोग उदाहरण वाक्य: षष्ठी प्रयोग शौरसेनी प्राकृत के सिद्धान्त ग्रन्थों में विभिन्न विभक्तियों में षष्ठी प्रयोग के कुछ उदाहरण वाक्य इस प्रकार हैं सो सव्वधम्माणं उवगृहणगा= वह सब धर्मों को ढकने वाला हेऊण सो अप्पा तिपयारो = व्यवहार नय से आत्मा सो मोक्खमग्गस्स ण चुक्कदि = वह मोक्षमार्ग से नहीं चूकता है। णाणं पुरिसस्स हवदि = ज्ञान आत्मा में होता है। अधिकरण कारक सप्तमी = में, पर वार्तालाप का वाक्य प्रयोग में कर्ता एवं कर्म के माध्यम से क्रिया का जो 244 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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