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पुढवी < पृथिवी
वीसा
विंशति
इ
इक्षुः
दुविहो द्विविधः
इ ए
< पिण्डम्
सेन्दरं
सिन्दूरम्
(घ) 'ई' ध्वनि (स्वर) को स्वरादेश: ( 4 ) गहिरं < गंभीरम्
इ
जुण्णं < जीर्णम् केरिसो < कीदृशः
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ए (ङ) 'उ' ध्वनि (स्वर) को स्वरादेश: ( 5 ) उ ओ
इआ
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ऐ
合せせせ
मुसओ < मूषिकः
सीहो
< सिंहः
(च) 'ऋ' ध्वनि (स्वर) को स्वरादेश : (6)
उच्छू
पेण्डं
ॠ अ तण
ऋ इ
इसी
ॠ <
ॠ उ
ॠ > रि
तृणम् वसहो वृषभः मच्चु ऋषिः किवो < उउदुऋतुः पुहइ ' पृथिवी निव्वुई
कृपा
पाउसो < प्रावृद्
पाहुडं < प्राभृतम्
रिणं
रिजु < ऋजुः
णिंम् वृक्षः रूसी ऋषिः
ऋ रु
रुक्खो
(झ) 'ऐ' ध्वनि (स्वर) को स्वरादेश: ( 7 )
उ
पोत्थओ < पुस्तक पोंग्गल < पुद्गलम्
अइ
ऐ
जिअदु< जीवतु
विहूणो विहीन एरिसो < ईदृशः
'ऐ' स्वर का प्राकृत में अभाव है। उसके स्थान पर निम्न आदेश होते
। यथा- आ > ए गेज्झं
इ सिंधवं सैन्धवम्
ई धीरं धैर्यम् ईसरिय
ग्राह्यम् मेत्तं मात्रम्
सिन्नं सैन्यम्
<
वइरं, < वैरम्
सेला < शैला,
मृत्यु
दिट्ठ दृष्टम्
निर्वत्तिः उसहो< ऋषभः
< ऐश्वर्यम्
रूसी
कैलासः
रूसी < ऐरावण
5. स्वरागम (स्वरभक्ति )
प्राकृत में स्वरागम (स्वरभक्ति) के भी अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं।
230 प्राकृत रत्नाकर