SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जनभाषा के रूप में प्राचीन समय से बोली जाती रही है, किन्तु उसका कोई उदाहरण हमारे समक्ष नहीं है। जो कुछ भी प्राकृत का स्वरूप हमारे सामने आया है, वह साहित्य के माध्यम से। इस साहित्यिक प्राकृत के भाषा के प्रयोग एवं काल की दृष्टि से तीन भेद किए जा सकते हैं- प्रथम युग, मध्ययुग और अपभ्रंश युग। ई.पू. छठी शताब्दी के ईसा की द्वितीय शताब्दी तक के बीच प्राकृत में रचे गये साहित्य की भाषा प्रथम युगीन प्राकृत कही जा सकती है। ईसा की द्वितीय शताब्दी से छट्ठी शताब्दी तक जिस प्राकृत भाषा में साहित्य लिखा गया है, उसे मध्युगीय प्राकृत कहते हैं। वास्तव में इस युग की प्राकृत साहित्यिक प्राकृत थी, किन्तु जनसामान्य की भाषा प्राकृत से भी उसका सम्बन्ध बना हुआ था। प्रयोग की भिन्नता की दृष्टि से इस समय तक प्राकृत के स्वरूप क्रमशः परिवर्तन हो गया था। तदनुरूप प्राकृत के वैयाकरणों ने प्राकृत के ये पाँच भेद निरूपित किये हैं अर्धमागधी, शौरसेनी, महाराष्ट्री, मागधी एवं पैशाची। 273. प्राकृत मार्गोपदेशिका पं. बेचरदास जीवराज दोषी ने ई. सन् 1968 में हिन्दी माध्यम से प्राकृत भाषा के अध्ययन हेतु प्राकृत मार्गोपदेशिका की रचना की। इसमें प्राकृत , पालि, शौरसेनी, मागधी, पैशाची एवं अपभ्रंश भाषा के पूरे नियम बताकर संस्कृत के साथ तुलनात्मक दृष्टि से विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस ग्रन्थ का मूल आधार आचार्य हेमचन्द्र का व्याकरण तथा डॉ. पिशल का प्राकृत भाषाओं का व्याकरण है। 274. प्राकृत भाषा के पाणिनि पिशेल पाश्चात्य विद्वानों में जर्मन विद्वान् रिजर्ड पिशेल ने सर्वप्रथम प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक एवं व्यवस्थित अध्ययन प्रस्तुत किया है । यद्यपि उनके पूर्व हार्नल, लास्सन, होयेफर, वेबर आदि ने प्राकृत भाषा के सम्बन्ध में अध्ययन प्रारम्भ कर दिया था, किन्तु इस अध्ययन को पूर्णता पिशेल ने ही प्रदान की है। रिचर्ड निपशेल ने आचार्य हेमचन्द्रकृत हेशब्दानुशासन प्राकृत व्याकरण का व्यवस्थित रीति से प्रथम बार सम्पादन किया, जो सन् 1877 ई. में प्रकाशित हुआ। प्राकृत भाषा के 226 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy