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________________ में भाषा कितना महत्त्वपूर्ण माध्यम होती है। संस्कृति की सुरक्षा भाषा की उदारता पर ही निर्भर है। प्राकृत अपभ्रंश भाषाएँ इस क्षेत्र में अग्रणी रही हैं। उन्हीं का प्रभाव आज की भारतीय भाषाओं में है। 259. प्राकृत का समृद्ध युग ईसा की दूसरी से छठी शताब्दी तक प्राकृत भाषा का प्रयोग निरन्तर बढ़ता रहा अतः इसे प्राकृत भाषा ओर साहित्य का समृद्ध युग कहा जा सकता है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में इस समय प्राकृत का प्रयोग होने लगा था। महाकवि भास ने अपने नाटकों में प्राकृत को प्रमुख स्थान दिया। कालिदास ने पात्रों के अनुसार प्राकृत भाषाओं के प्रयोग को महत्त्व दिया। इसी युग के नाटककार शूद्रक के विभिन्न प्राकृतों का परिचय कराने के उद्देश्य से मृच्छकटिकं प्रकरण की रचना की। यह लोकजीवन का प्रतिनिधि नाटक है। अतः उसमें प्राकृत के प्रयोग में भी विविधता है। इसी युग में प्राकृत में कथा, चरित, पुराण एवं महाकाव्य आदि विधाओं में ग्रन्थ लिखे गये। उनमें जिस प्राकृत का प्रयोग हुआ उसे सामान्य प्राकृत कहा जा सकता है। क्योंकि तब तक प्राकृत ने एक निश्चित स्वरूप प्राप्त कर लिया था, जो काव्यलेखन के लिए आवश्यक था। प्राकृत के इस साहित्यिक स्वरूप को महाराष्ट्री प्राकृत कहा गया है इसी युग में गुणाढ्य ने बृहत्कथा नामक कथा ग्रन्थ प्राकृत में लिखा, जिसकी भाषा पैशाची प्राकृत कही गयी है। इस तरह नाटक और साहित्य में प्रमुख रूप से जिन चार प्राकृत भाषाओं का प्रयोग हुआ है वे हैं- 1. शौरसेनी 2. मागधी 3. महाराष्ट्री और 4. पैशाची। इन चारों प्राकृतों का स्वरूप प्राकृत के वैयाकरणों ने अपने ग्रन्थों में स्पष्ट किया है। 260. प्राकृत के प्राचीन व्याकरण ग्रन्थ यह भी कहा जाता है कि पाणिनि ने स्वयं भी एक प्राकृत-व्याकरण की रचना की थी और महर्षि वाल्मीकि ने भी प्राकृत-सूत्र लिखे थे। इसी प्रकार चन्द्रकृत प्राकृत-भाषान्तर विधान कात्यायन-कृत प्राकृत-मंजरी, तथा भामह-कृत 218 0 प्राकृतरत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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