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________________ प्रकार काव्य के मर्म को समझने के लिए अलंकार-ग्रन्थों की रचना की गई। काव्य का स्वरूप, रस, गुण, दोष, रीति, अलंकार एवं काव्य-चमत्कार का निरू पण अलंकारशास्त्रों में ही पाया जाता है। अलंकारशास्त्रों के अर्वाचीन प्रणेताओं में भरत, भामह, दण्डी, वामन, रुद्रट, भोजराज, हेमचन्द्र आदि प्रमुख हैं। इनके द्वारा रचित प्रमुख अलंकारशास्त्रों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है। ये अलंकारशास्त्र संस्कृत भाषा में निबद्ध हैं, किन्तु इनमें लक्षणों को समझाने के लिए उदाहरण स्वरूप पद्य प्राकृत भाषा में दिये गये हैं। इन अलंकारशास्त्रों में उद्धृत प्राकृत गाथाओं पर प्रो. बी. एम. कुलकर्णी ने शोध कार्य किया है। प्रो. जगदीश चन्द्र जैन ने प्राकृत पुष्करिणी नामक ग्रन्थ में इन सब प्राकृत गाथाओं का संग्रह किया है। अलंकारशास्त्र के इन दिग्गज पंडितों ने प्राकृत भाषाओं संबंधी चर्चा करने के साथ-साथ ग्रन्थ में प्रतिपादित विषय के उदाहरणस्वरूप प्राकृत के अनेक सरस पद्य उद्धृत किए हैं, जिससे पता लगता है कि इन विद्वानों के समक्ष प्राकृत साहित्य का अनुपम भण्डार था। इनमें से बहुत से पद्य गाथासप्तशती, सेतुबन्ध, गउडवहो, स्नावलि, कर्पूरमन्जरी आदि से उद्धृत हैं, अनेक अज्ञातकर्तृक हैं। विश्वनाथ ने अपने प्राकृत काव्य कुवलयाश्वचरित से कुछ पद्य उद्धृत किये हैं। अलंकारदप्पण (अलंकारदर्पण) नाम की वि.सं. 1161 की एक ताडपत्रीय प्रति जैसलमेर के भंडार में मिली है। इसमें अर्थालंकार और शब्दालंकारों के प्राकृत में लक्षण दिये गये हैं। कुल मिलाकर 134 गाथाओं में यह विवेचन है। 21 अवन्ति-सुकुमाल (सुकुमालचरित) तप की चरम आराधना और तिर्यच (शृंगाली) के उपसर्ग को अडिग भाव से सहन करने के दृष्टान्तरूप अवन्ति-सुकुमाल की कथा आराधना कथाकोशों तथा अन्य कथाकोशों में वर्णित है। हरिषेण के कथाकोश में यह कथा 260 श्लोकों में दी गई है। दानप्रदीप में इसे उपाश्रयदान के महत्त्व में कहा गया है। अवन्तिसुकुमाल आचार्य सुहस्ति के शिष्य माने गये हैं और कहा जाता है कि इन्हीं के समाधिस्थल पर उज्जैन का महाकालेश्वर मन्दिर बना है। पाटन (गुजरात) के तपागच्छ भण्डार के एक कथासंग्रह में अवन्ति सुकुमालकथा 119 प्राकृत गाथाओं में उपलब्ध है। 12 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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