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नोट:-1-इन सामान्य विशेषताओं के अतिरिक्त अर्धमागधी में तृतीया एकवचन में मणसा, वयसा, कायसा, भगवया, भगवता, कम्मुणा शब्द रूप भी पाए जाते है। 2-आज्ञा एवं विधि के मध्यम पुरुष एकवचन में 'हि' प्रत्यय से पूर्व धातुओं का दीर्घ भी होता है। यथा- भणाहि, पासाहि ।
डॉ. के. आर. चन्द्रा ने वर्तमान अर्धमागधी आगमों में महाराष्ट्री के प्रभाव की प्रचुरता और सम्पादकों द्वारा प्राचीन रूपों को कम अपनाने के कारण आरांचांगसूत्र की प्राचीन अर्धमागधी के स्वरुप को खोजने का श्रमसाध्य महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। उन्होंने अपनी पुस्तक में अर्धमागधी की प्राचीनता के जो उदाहरण या नियम स्वीकार किये हैं उनमें से अधिकांश प्रवृत्तियों को हम सिद्धान्त ग्रंथों की भाषा शौरसेनी प्राकृत में भी पाते हैं। 18. अलंकारदर्पण
अलंकारदर्पण प्राकृत भाषा में अलंकार विषय पर लिखा गया एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। इसमें 134 गाथाएँ हैं । अलंकारों के लक्षण, उदाहरण, काव्य-प्रयोजन आदि विषयों पर प्राकृत भाषा में पद्य लिखे गये हैं। इसके कवि अज्ञात है। रचना काल भी निश्चित नहीं है ।
इन प्रमुख ग्रन्थों के अतिरिक्त पंडितराज जगन्नाथ (17वीं शताब्दी) का रसगंगाधर, अमरचन्द्रसूरि का अलंकारप्रबोध आदि अलंकारशास्त्र के अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं, जिनमें काव्य की दृष्टि से प्राकृत के सुन्दर पद्य उद्धृत हैं। 19. अलंकार सर्वस्व
12वीं शताब्दी के अलंकारशास्त्री राजानक स्य्यक ने अपने ग्रन्थ अलंकारसर्वस्व में अलंकारों का बड़ा ही पांडित्यपूर्ण ढंग से विवेचन किया है। इस ग्रन्थ में प्राकृत के 10 पद्यों को उद्धृत किया है। कश्मीर के राजा जयसिंह के महाकवि मंखुक ने इस पर वृत्ति लिखी है।
20. अलंकारशास्त्र
जिस प्रकार भाषा को व्यवस्थित करने के लिए व्याकरण-ग्रन्थों तथा काव्य की सार्थकता के लिए छंद ग्रन्थों की आवश्यकता महसूस की गई उसी
प्राकृत रत्नाकर 011