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________________ ग्यारहवाँ भाषापद है। इस पद में भाषा सम्बन्धी विचारणा करते हुए बताया है कि भाषा किस प्रकार उत्पन्न होती हैं, कहाँ पर रहती है उसकी आकृति किस प्रकार की हैं, उसका स्वरूप, भेद-प्रभेद और बोलने वाला व्यक्ति इत्यादि अनेक महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर चिन्तन किया गया है। जो बोली जाय वह भाषा है। दूसरे शब्दों में कहें तो जो दूसरों के अवबोध-समझने में कारण हो वह भाषा है । भाषा का आदि कारण तो जीव है और उपादान कारण पुद्गल है। जीव स्थितिपरिणत भाषा के पुद्गलों को काययोग से ग्रहण कर भाषा रूप में परिणत करता है। ये भाषा के पुद्गल जब भाषा के रूप में बाहर निकलते हैं तब सम्पूर्ण लोक में व्याप्त हो जाते हैं। 237. प्रथम प्राकृत शौरसेनी प्राकृत प्राचीनकाल से ही सार्वजनीन रहने के कारण महाभाषा अथवा राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित रही। बीसवीं सदी के पाणिनी माने जाने वाले प्रमुख भारतीय-भाषाविद् एवं भाषा-सर्वेक्षक डॉ. जार्ज गियर्सन ने भारत के भाषा-सर्वेक्षण के बाद बताया था कि “समग्र भातर में सहस्रों प्रकार की बोलियाँ बोली जाती हैं, जिनकी समग्रता का अध्ययन दुरूह एवं समयसाध्य है।" फिर भी उन्होंने समग्र भारत की पद-यात्रा कर लगभग साढ़े पांच सौ से ऊपर की भाषाओं की जानकारी अपने Linguistic Survey of India के 18 भागों में प्रस्तुत करते हुए उनका मूलस्रोत प्रथम प्राकृत को माना है। ___ ईसा-पूर्व की अनेक सदियों-पूर्व से भारतीय आर्यभाषा प्राकृत के नाम से अभिहित थी। प्राकृत का अर्थ है नैसर्गिक या स्वाभाविक एवं अकृत्रिम भाषा। इसके विपरीत संस्कृत का अर्थ है संस्कार की हुई तथा नियमबद्ध भाषा । प्राकृत की इस परिभाषा से स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन वैदिक मन्त्रों की बोलचाल की भाषायें बाद के मन्त्रों की नियमबद्ध संस्कृत भाषा की तुलना में वास्तव में प्राकृत नैसर्गिक भाषाएँ थीं। वस्तुतः इन्हें भारत की प्रथम-प्राकृत कहा जा सकता है। 238. प्रत्येकबुद्धचरित यह प्राकृत भाषा में निबद्ध रचना है जिसका ग्रन्थाग्र 6050 लोक है। बृहट्टिप्पनिका के अनुसार इसकी रचना सं. 1261 में श्रीतिलकसूरि ने की थी। श्रीतिलकसूरिचन्द्रगच्छीय शिवप्रभसूरिके शिष्य थे।ग्रन्थअबतक अप्रकाशित है। 186 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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