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________________ की टीका है। इसमें गच्छ में रहने वाले आचार्य तथा श्रमण और श्रमणियों के आचार का वर्णन है । गच्छ के महत्त्व का प्रतिपादन करते हुए लिखा है कि गच्छ महान् प्रभावशाली है, उसमें रहने से महान् निर्जरा होती है। सारणा, वारणा और प्रेरणा होने से साधक के पुराने दोष नष्ट होते हैं, और नूतन दोषों की उत्पत्ति नहीं होती। वह सुगच्छ है जिस गच्छ में दान, शील, तप और भावना इन चार प्रकार के धर्मों का आचरण करने वाले गीतार्थ श्रमण अधिक मात्रा में हों । गच्छाणुभावो तत्थ वसंताण निज्जरा विउला । सरणवारणचो अणमाईहिं न दोसपडिवत्ती ॥ - गच्छाचार, गा.-51 ( 8 ) गणिविद्या ( गणिविज्जा ) गणिविद्या यह ज्योतिष का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इसमें केवल 82 गाथाएँ हैं। इसमें (1) दिवस, (2) तिथि, (3) नक्षत्र, (4) करण, (5) ग्रह, (6) दिवस, (7) मुहूर्त, (8) लग्न और (9) निमित्त - इन नौ विषयों का विवेचन है । दिवस से तिथि, तिथि से नक्षत्र, नक्षत्र से करण, करण से ग्रह दिवस ग्रह दिवस से मुहूर्त, मुहूर्त से शकुन, शकुन से लग्न और लग्न से निमित्त बलवान होता है। करण के नाम, शुभ कार्यो के लिए कौनसा करण, उपयुक्त है । छाया मुहूर्त, अच्छे कार्यो के लिए शुभ योग, तीन प्रकार के शुकुन, तीन प्रकार के शकुनों में किया जाने वाला कार्य, प्रशस्त और अप्रशस्त लग्न, मिथ्या और सत्य निमित्त, तीन प्रकार के निमित्त निमित्त की सत्यता, प्रशस्त निमित्तों में सभी कार्य करने चाहिए और अप्रशस्त निमित्तों में सभी शुभ कार्य करने का निषेध किया गया है। प्रस्तुत ग्रंथ में होना का भी वर्णन है। ( 9 ) देवेन्द्रस्तव (देविंदथव ) देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक में बत्तीस देवेन्द्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इसमें 307 गाथाएँ हैं । ग्रन्थ के प्रारम्भ में बताया है कि कोई श्रावक भगवान ऋषभदेव से लेकर चौबीसवें तीर्थंकर महावीर तक की स्तुति करता है। तीर्थंकर बत्तीस इन्द्रों से पूजित है । आठ प्रकार के व्यन्तर देव, व्यन्तर देवों के महर्द्धिक सोलह इन्द्र, तीनों लोक में व्यन्तरेन्द्रों का स्थान, व्यन्तरेन्द्रों का जघन्य, मध्यम 182 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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