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________________ स्वाद्य इन सभी के लिए पिण्ड शब्द व्यवहत हुआ है। श्रमण के ग्रहण करने योग्य आहार को पिण्ड कहा गया है। प्रस्तुत ग्रंथ में उसका विवेचन है। उद्गम, उत्पादन, एषणा, संयोजना, प्रमाण, अंगार, धूम और कारण-इसमें ये आठ अधिकार हैं। इसमें 671 गाथाएँ हैं। नियुक्ति और भाष्य की गाथाएँ परस्पर मिल चुकी हैं। प्रस्तुत नियुक्ति के रचयिता भद्रबाहु माने जाते हैं। 229.पिशेल,रिचर्ड प्रो. रिचर्ड पिशेल का जन्म 18 जनवरी 1849 ई. में जर्मनी के ब्रेजला नामक स्थान में हुआ था।आपके पिता का नाम ई. पिशेल था। सन् 1870 ई. में रिचर्ड पिशेल को ब्रेजला यूनिवर्सिटी से डाक्टरेट की उपाधि मिली थी। आप 1874 भारतीय विद्या विभाग के रीडर पद पर नियुक्त हुए और 1875 ई. में कील विश्वविद्यालय, जर्मनी में आपको संस्कृत तथा तुलनात्मक भाषा विभाग का प्रोफेसर बनाया गया। आपने बर्लिन विश्वविद्यालय में भी अपनी सेवायें दी हैं। सन् 1908 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में आपको प्राकृत भाषाओं पर व्याख्यान देने के लिए भारत आमन्त्रित किया गया था। किन्तु इस व्याख्यान के पूर्व ही आपका निधन हो गया। आपने संस्कृत-प्राकृत पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। उनमें कालिदासकृत शाकुन्तलम्, हेमचन्द्र का प्राकृत व्याकरण और प्राकृत भाषाओं का व्याकरण आदि प्रसिद्ध पुस्तक हैं। ये पुस्तकें पहले जर्मन भाषा में लिखी गईं, फिर उनके अंग्रेजी और हिन्दी अनुवाद विद्वानों ने तैयार कर प्रकाशित किये हैं। वैदिक स्टडीज और बौद्धधर्म पर भी डॉ. पिशेल के शोधकार्य प्रकाशित हैं। प्राकृत भाषा और भारतीय विद्या के इस मूर्धन्य मनीषी डॉ. पिशेल का 26 दिसम्बर सन् 1908 में मद्रास में देहावसान हो गया। डॉ. एल. डी. बार्नेट ने डॉ. पिशेल के जीवन और योगदान पर महत्त्वपूर्ण लेख प्रकाशित किया है। 230. पुष्पिका (पुष्फचूलकहा) अर्धमागधी आगम साहित्य में पुष्पिका उपांग ग्रन्थों में स्व-समय और पर समय के ज्ञान की दृष्टि से कथाओं का संकलन है। कथाओं में कुतूहल तत्त्व की प्रधानता है। सभी आख्यानों में वर्तमान जीवन पर उतना प्रकाश नहीं डाला गया जितना उनके परलोक के जीवन पर डाला गया है।सांसारिक मोह और ममताओं प्राकृत रत्नाकर 0175
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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