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________________ कर उनके पर्यायों का उल्लेख किया गया है। संस्कृत व्युत्पत्तियों से सिद्ध प्राकृत शब्द तथा देशी शब्द इन दोनों ही प्रकार के शब्दों का संकलन इस ग्रन्थ में किया गया है। कवि ने भ्रमर के पर्यायवाची शब्दों का उल्लेख निम्न गाथा में इस प्रकार किया है फुल्लंधुआरसाऊभिंगा भसला यमहुअरा अलिणो। इंदिदरा दुरेहा धुअगाया छप्पया भमरा ॥-(गा.11) अर्थात् - फुल्लंधुअ, रसाऊ, भिंग, सल, महुअर, अलि, इंदिदर, दुरेह, धुअगाय, छप्पय और भमर ये भ्रमर के 11 नाम हैं। इस कोश में कुछ ऐसे शब्द भी आये हैं, जो आज भी लोकभाषाओं में प्रचलित हैं। यथा - आलसी के लिए 'मट्ठ' शब्द तथा नूतन पल्लवों के लिए 'कुंपल' शब्द का प्रयोग किया है, जो आज भी ब्रज, भोजपुरी आदि में प्रयुक्त होता है । इस दृष्टि से यह कोश-ग्रन्थ भाषा-विज्ञान ही नहीं, अपितु तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक एवं लोक मान्यताओं के अध्ययन में भी सहायक सिद्ध होता है। 223. पाइय-सद-महण्णवो प्राकृत भाषा का यह प्रसिद्ध कोश ग्रन्थ है। कलकत्ता के पंडित हरगोविन्ददास त्रिकमचंद सेठ ने 14वर्षों के कठोर परिश्रम के उपरांत इस कोशग्रन्थ का संकलन एवं सम्पादन किया है। इस कोश-ग्रन्थ में आर्ष प्राकृत से लेकर अपभ्रंश युग तक की प्राकृत भाषाओं के विविध विषयों से सम्बन्धित जैन एवं जैनेतर प्राचीन ग्रन्थों की अति विशाल शब्द राशि एवं उनके संभावित अर्थों का विवेचन किया गया है। प्रत्येक शब्द के साथ किसी न किसी ग्रन्थ का प्रमाण अवश्य दिया गया है। प्राकृत भाषा के विद्यार्थियों के लिए यह ग्रन्थ अत्यंत उपयोगी है। 224.पालि भाषा भगवान बुद्ध के वचनों का संग्रह जिन ग्रंथों में हुआ है, उन्हें त्रिपिटक कहते हैं इन ग्रंथों की भाषा को पालि कहा गया है। पालि भाषा का गठन तत्कालीन विभिन्न बोलियों के मिश्रण से हुआ माना जाता है, जिसमें मागधी प्रमुख थी। प्राकृत रत्नाकर 0171
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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