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________________ 221.पाइअकहासंगह (प्राकृत कथासंग्रह) पउमचंदसूरि के किसी अज्ञातनाम शिष्य ने विक्कमसेणचरिय नामक प्राकृत कथा ग्रन्थ की रचना की थी। इस ग्रन्थ में आई हुई चौदह कथाओं में से बारह कथायें प्राकृत कथासंग्रह में दी गई हैं। इससे अधिक ग्रन्थकर्ता और उसके समय आदि के संबंध में और कुछ जानकारी नहीं मिलती। प्राकृत कथासंग्रह की एक प्रति संवत् 1318 में लिखी गई थी, इससे पता लगता है कि मूल ग्रंथकार का समय इससे पहले ही होना चाहिये। इस संग्रह में दान, शील, तप भावना, समयक्त्व, नवकार तथा अनित्यता आदि से संबंध रखनेवाली चुनी हुई सरस कथायें हैं, जिनमें अनेक लौकिक और धार्मिक आख्यान कहे गये हैं। समुद्रयात्रा के वर्णन में मार्ग में कालिका वायु चलती है जिससे जहाज टूट जाता है। बहुत से यात्रियों को अपने प्राणों से वंचित होना पड़ता है। श्रेष्ठीपुत्र के हाथ में लकड़ी का एक तख्ता पड़ जाता है, और उसके सहारे वह किसी पर्वत के किनारे जा लगता है। वहाँ से सुवर्णभूमि पहुँचकर वह सोने की ईटें प्राप्त करता है। कर्म की प्रधानता बतलाते हुए इस ग्रन्थ में कहा गया है अहवा न दायव्वो दोसो कस्स वि केण कइया वि। पुव्वज्जियकम्माओ हवंति जं सुक्खदुक्खाइं ॥ अथवा किसी को कोई भी दोष नहीं देना चाहिये, पूर्वोपार्जित कर्म से ही सुख-दुख होते हैं। 222. पाइयलच्छीनाममाला पाइयलच्छीनाममाला उपलब्ध प्राकृत कोश-ग्रन्थों में स्वतन्त्र रूप से लिखा गया सबसे प्राचीन कोश-ग्रन्थ है। कवि धनपाल ने वि.स. 1029 में अपनी छोटी बहन सुन्दरी के अध्ययन हेतु धारानगर में इस कोश-ग्रन्थ की रचना की थी। यह अति संक्षिप्त पद्यबद्ध कोश है। इस कोश-ग्रन्थ में संस्कृत के अमरकोश की रीति से करीब 279 गाथाओं में 998 प्राकृत शब्दों के पर्यायवाची शब्दों का संग्रह किया गया है। ग्रन्थ का प्रारम्भ मंगलाचरण से हुआ है, जिसमें विभिन्न देव पर्यायों का निरूपण हुआ है। शब्दों की चयन प्रक्रिया में अकारादि क्रम को न अपना कर विषय, स्थान एवं समय के आधार पर केवल नाम शब्दों का चयन 170 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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