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________________ परमात्मप्रकाश में सब 345 पद्य हैं, उनमें 5 गाथाएँ एक स्त्रग्धरा और मालिनी है, किन्तु इनकी भाषा अपभ्रंश नहीं है। तथा एक चतुष्पादिका और शेष 337 अपभ्रंश दोहे हैं। पूज्यपाद के समाधिशतक और परमात्मप्रकाश में भी घनिष्ट समानता है। देवसेन के तत्वसार और परमात्मप्रकाश में भी काफी समानता है। 217.पंचकल्पमहाभाष्य __ आचार्य संघदासणी की वसुदेवहिंडी के अतिरिक्त दूसरी कृति पंचकल्पमहाभाष्य है जो पंचकल्पनियुक्ति के विवेचन के रूप में है। इसमें कुल 2655 गाथाएँ हैं। जिसमें भाष्य की 2574 गाथाएँ है। इसमें पहले जिनकल्प और स्थविरकल्प ये दो भेद किये हैं। श्रमणों के ज्ञान, दर्शन और चारित्र की विविध सम्पदा का वर्णन करते हुए चारित्र-सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात ये पाँच प्रकार बताये हैं। चारित्र-क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक रूप से तीन प्रकार का है। ज्ञान-क्षायिक और क्षायोपशमिक के रूप से दो प्रकार का है और दर्शन-क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक रूप से तीन प्रकार का रूप है। 218. पंच संग्रह __पंचसंग्रह एक संग्रह ग्रंथ है जो कर्मस्तव,शतक और सित्तरी आदि के आधार से लिखा गया है। इसमें जीवसमास, प्रकृतिसमुत्कीर्तन, कर्मस्तव, शतक और सप्ततिका इन पाँच विषयों का विवेचन है। अतएव इसे पंचसंग्रह कहा जाता है। आचार्य अमितगति (वि.सं. 1073)और पंडित आशाधर पंचसंग्रह का उल्लेख किया है। जीव समास अधिकार में 206 गाथायें हैं जिनमें 20 प्ररूपणाओं का कथन किया गया है। उल्लेखनीय है कि षट्खंडागम के सत्प्ररूपणा सूत्रों की धवला टीका में गुणस्थान और मार्गणाओं का विवेचन आचार्य वीरसेन ने प्रस्तुत जीवसमास अधिकार के आधार से ही किया है। प्रकृतिमुत्कीर्तन नामक दूसरे अधिकार में 12 गाथाओं में आठ कर्मो की प्रकृतियों का विवेचन है। कर्मस्तव नामक तीसरे अधिकार में 77 गाथायें है जिनमें से 53 गाथायें कर्मस्तव अथवा बंधोदयसतवयुक्त नाम से प्रसिद्ध श्वेतांबरीय प्राचीन द्वितीय कर्मग्रंथ में ज्यों की त्यों पाई जाती हैं। इस अधिकार में कर्मो के बंध उदय, उदीरणा और सत्व का कथन किया गया है। शतक नामक चौथे अधिकार में 422 गाथायें हैं। इस 168 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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