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________________ दिगम्बर और यापनीय सभी सम्प्रदायों का समावेश हो गया है। संभवतः विमलसूरि उस युग के थे जब जैनों में साम्प्रदायिकता का विभेद गहरा न हो सका था। 214. पउमपभचरियं इस काव्य में 6वें तीर्थंकर पद्यप्रभ का चरित वर्णित है। यह एक अप्रकाशित रचना है। इसके रचियता देवसूरि हैं। इनकी दूसरी कृति सुपार्श्वचरित (प्राकृत) का भी उल्लेख मिलता है। इनका थोड़ा सा परिचय प्राप्त है।ये जालिहरगच्छ के सर्वानन्द के प्रशिष्य तथा धर्मवशेषसूरि के शिष्य एवं पट्टधर थे। ग्रन्थकार ने बतलाया है कि प्राचीन कोटिक गण की विद्याधर शाखा से जालिहर और कासद्रहगच्छ एक साथ निकले थे। अन्य सूचनाएँ जो उन्होंने दी हैं, तदनुसार उन्होंने देवेन्द्रगणि से तर्कशास्त्र पढ़ा था और हरिभद्रसूरि से आगम। उनके दादागुरु पार्श्वनाथचरित के रचियता सर्वानन्द थे। प्रस्तुत प्राकृत कृति का समय सं. 1254 बतलाया गया है। 215. पद्मनन्दिमुनि पद्मनन्दि नाम के 9 से भी अधिक आचार्य एवं भट्टारक हुए हो गये हैं जिनका उल्लेख विभिन्न ग्रन्थों, शिलालेखों एवं मूर्तिलेखों में मिलता है। लेकिन वीरनन्दि के प्रशिष्य एवं बालनन्दि के शिष्य आचार्य पद्मनन्दि उन सबसे भिन्न हैं। ये राजस्थानी विद्वान् थे और बांरा नगर इनका प्रमुख साहित्यिक केन्द्र था। पद्मनन्दि ने अपने प्रमुख ग्रन्थ जम्बूदीपण्णती में बांरा नगर का विस्तृत वर्णन किया है। वह नगर उस समय पुष्करणी, बावड़ी, सुन्दर, भवनों, नानाजनों से संकीर्ण और धनधान्य से समाकुल जिनमन्दिरों से विभूषित तथा सम्यक्दृष्टिजनों और मुनिगणों के समूहों से मंडित था। पद्मनन्दि के समय बारा नगर का शक्तिभूपाल शासक था। वह राजा शील-सम्पन्न, अनवरत दानशील, शासन वत्सल घोर, नानागण कलित, नरपति संपूजित तथा कलाकुशल एवं नरोत्तम था। राजपूताने के इतिहास में गुहिलोत वंशी राजा नरवाहन के पुत्र शालिवाहन के उत्तराधिकारी शक्तिकुमार का उल्लेख मिलता है। पं. नाथूराम प्रेमी ने बारां की भट्टारक गादी के आधार पर पद्मनन्दि का समय विक्रम संवत् 166 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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