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________________ चरित्र चित्रण- पौराणिक महाकाव्य पउमचरिउ के सभी पात्र सबके लिए चिर परिचित हैं। इन सभी पात्रों के चरित्र-चित्रण में कवि स्वयंभू की अपार मार्मिकता, हृदयग्राहिता और प्रभावकारिता दिखाई देती है। राम और सीता सभी पात्रों में प्रधान हैं। प्रकृति वर्णन- पउमचरिउ में प्रकृतिवर्णन के उल्लेख वस्तुगणना, अलंकार उद्दीपन एवं मानवीकरण के रूप में मिलते हैं। ऋषभजिन शकटमुख नाम के उद्यान में आकर ठहरते हैं, पउमचरिउ में उस उद्यान के विषय में लम्बी सूची गिनाई है। नन्दनवन के वृक्षों की परिगणना करते करते तो स्वयंभू थक से गये प्रतीत होते हैं और वे कह उठते हैं कि और भी बहुत से वृक्ष हैं जिन्हें कौन समझ सकता है। वरुणकुमारों के साथ रावण ऐसे क्रीड़ा कर रहा है मानो बैल जलधाराओं के साथ खेल रहा हो। यहाँ प्रकृति का अलंकार रूप में चित्रण मिलता है। आते हुए वसंत की ऋद्धि देखकर मधु, इक्षुरस और सुरा से मस्त भोली-भाली नर्मदा रूपी बाला ऐसे मचल उठी मानों कामदेव की रति हो, यहाँ उद्दीपन रूप में प्रकृति का चित्रण है। रस-रसभिव्यक्ति की दृष्टि से पउमचरिउ में हमें मुख्यतः शान्त, वीर, श्रृंगार और करुण रस मिलते हैं। करुण रस की अभिव्यक्ति पउमचरिउ में अनेक स्थलों पर हुई है। शान्त रस के रूप में पउमचरिउ में अनेक ऐसे स्थल मिलते हैं जिनमें संसार को तुच्छ, नश्वर और दुःख बहुत बतलाकर तथा शरीर की क्षणभंगुरता का प्रतिपादन कर संसार के मिथ्यात्व का उपदेश देते हुए उसके प्रति विरक्ति का भाव पैदा किया गया है। ऐसे निर्वेद भाव के स्थलों में शान्त रस अभिव्यक्त हुआ अलंकार - उपमा कालिदासस्य के समान स्वयंभू का सर्वप्रिय अलंकार उत्प्रेक्षा है। उत्प्रेक्षा का प्रयोग पउमचरिउ में पद-पद पर अनायास मिलता है। कडवक के कडवक उत्प्रेक्षा की लड़ियों से भरे हैं। जैसे रावण ने अचानक मन्दोदरी को देखा मानों भ्रमर ने अभिनव कुसुममाला देखी हो। मन्दोदरी के पैरों के बजते हुए नूपुर ऐसे मालूम होते हैं मानो बन्दीजन मधुर शब्दों का पाठ कर रहे हों। चढ़ती हुई रोमराजि ऐसी थी मानों काली बालनागिन ही शोभित हो रही हो, आदि प्राकृत रत्नाकर 0161
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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