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________________ तत्त्वसार और नयचक्र। डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने उक्त ग्रन्थों के अतिरिक्त, आराधनासार एवं आलापपद्धति को भी इनकी रचना स्वीकार किया है। 177. देवेन्द्रसूरि __प्राकृत कृष्णचरित के रचयिता तपागच्छीय देवेन्द्रसूरि हैं। इनकी अन्य रचना सुदंसणाचरियं अर्थात् शकुनिकाविहार भी मिलती है जिसमें ग्रन्थकार ने अपना परिचय दिया है कि वे चित्रपालकगच्छ के भुवनचन्द्र गुरु, उनके शिष्य देवभद्र मुनि, उनके शिष्य जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य थे। उनके एक गुरुभ्राता विजयचन्द्रसूरि थे। तपागच्छ पट्टावली के अनुसार ग्रन्थकार के दादा गुरु वस्तुपाल महामात्य के समकालीन थे। प्रस्तुत कृष्णचरित्र का रचनाकाल चौदहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध आता है। इस सुदंसणाचरिय के रचयिता तपागच्छीय जगच्चन्द्रसूरि के शिष्य देवेन्द्रसूरि हैं। गुरुभ्राता विजयचन्द्रसूरि ने इस ग्रन्थ के निर्माण में सहायता दी थी। कहा जाता है कि देवेन्द्रसूरि को गुर्जर राजा की अनुमतिपूर्वक वस्तुपाल मंत्री के समक्ष आबू पर सूरिपद प्रदान किया गया था। देवेन्द्रसूरि ने वि.सं. 1323 में विद्यानन्द को सूरिपद प्रदान किया था तथा सं. 1327 में स्वर्गवासी हुए थे अतः इस कथाग्रन्थ की रचना इस समय से पूर्व हुई है। इनके अन्य ग्रन्थों में पंचनव्यकर्मग्रन्थ, तीन आगमों पर भाष्य, श्राद्धदिनकृत्य सवृत्ति तथा दानादिकुलक मिलते हैं। 178. देशीनाममाला कलिकालसर्वज्ञ आचार्य हेमचन्द्र द्वारा ई. सन् 1159 में विरचित प्राकृत के देशी शब्दों का यह शब्द कोश अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी है। इस ग्रन्थ की रचना सिद्धहेमशब्दानुशासन के आठवें अध्याय में वर्णित प्राकृत व्याकरण की पूर्ति एवं दुर्लभ शब्दों के अर्थ ज्ञान हेतु की गई है। इस शब्द कोश में 8 अध्याय एवं 783 गाथाएँ हैं, जिनमें 3978 शब्द संकलित हैं। शब्दों का संकलन अकारादि क्रम में किया गया है। आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार इस कोश-ग्रन्थ में उन देशी शब्दों का संकलन किया गया है, जो शब्द न तो व्याकरण से व्युत्पन्न हैं, न संस्कृत कोशों में निबद्ध हैं, तथा लक्षणा शक्ति के द्वारा भी जिनका अर्थ प्रसिद्ध नहीं है। साथ ही आचार्य हेमचन्द्र ने यह भी स्पष्ट किया है कि देश-विदेश में प्रचलित ये देशी शब्द अनंत हैं, अतएव उन सभी शब्दों का संग्रह नहीं किया जा सकता है। 1400 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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