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________________ है। ग्रन्थ में एक स्थान पर संयमदेव के गुरु संयमसेन और उनके गुरु माधवचन्द्र बताये गये हैं। रिट्ठसमुच्चय के कर्ता आचार्य दुर्गदेव दिगंबर संप्रदाय के विद्वान् थे। उन्होंने वि. सं. 1089 (ईस्वी सन् 1032) में कुम्भनगर (कुंभेरगढ, भरतपुर) में जब लक्ष्मीनिवास राजा का राज्य था तब इस ग्रंथ को समाप्त किया था। दुर्गदेव के गुरु का नाम संजमदेव था। उन्होंने प्राचीन आचार्यों की परंपरा से आगम मरणकरंडिया के आधार पर रिट्ठसमुच्चय में रिष्टों का याने मरण-सूचक अनिष्ट चिन्हों का ऊहापोह किया है। इसमें कुल 261 गाथाएँ हैं, जो प्रधानतया शौरसेनी प्राकृत में लिखी गई हैं। 172. दृष्टिवादअंग(दिट्टिवायो) __ जैन आगम साहित्य के अंग ग्रन्थों में दृष्टिवाद बारहवाँ अंग है। इसमें संसार के सभी दर्शनों एवं नयों का निरूपण किया गया है। किन्तु दृष्टिवाद अब विलुप्त हो चुका है। श्रुतकेवली भद्रबाहु के स्वर्गवास के पश्चात् दृष्टिवाद का धीरे-धीरे लोप होने लगा तथा देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के स्वर्गवास के बाद यह शब्द रूप से पूर्णतया नष्ट हो गया। अर्थरूप में कुछ अंश बचा रहा। समवायांग एवं नन्दीसूत्र में इसके पाँच विभाग बताये गये हैं - परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका। षट्खण्डागम, कषायपाहुड आदि शौरसेनी दिगम्बर आगम ग्रन्थ इसी दृष्टिवाद अंग के स्मृति ज्ञान पर आधारित माने गये हैं। 173. देवभद्राचार्य इस पासनाहचरियंचरित ग्रन्थ के कर्ता देवभद्राचार्य हैं। ये विक्रम की 12वीं शताब्दी के महान् विद्वान् एवं उच्चकोटि के साहित्यकार थे। इनका नाम आचार्य पदारूढ़ होने के पहले गुणचन्द्रगणि था। उस समय संवत् 1139 में श्री महावीरचरियं नामक विस्तृत 12024 लोक-प्रमाण ग्रन्थ रचा। दूसरा ग्रन्थ कथारत्नकोश है जो आचार्य पदारूढ़ होने के बाद वि.सं.1158 में रचा था। प्रस्तुत पासनाहचरियं की रचना उनने वि. सं. 1168 में गोवर्द्धन श्रेष्ठि के वंशज वीरश्रेष्ठि के पुत्र यशदेव श्रेष्ठि की प्रेरणा से की थी। इस ग्रन्थ की प्रशस्ति में लेखक की गुर्वावली इस प्रकार दी गई है :- चन्द्रकुल वज्रशाखा में वर्धमानसूरि हुए। उनके दो शिष्य थे जिनेश्वरसूरि और बुद्धिसागरसूरि ।जिनेश्वरसूरि के शिष्य 138 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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