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उसकी मां भी उसमें कूद पड़ी। नीचे एक नाग ने उन्हें बचा लिया। बाद में उस नाग ने बच्चे को गोद में ले लिया। इससे उसका नाम नागकुमार पड़ गया।
यह नागकुमारचरित कृति नौ सन्धियों में पूण हुई है। कृति में श्रुतपंचमी के महत्त्व को बताते हुए मगध के राजा जयन्धर के पुत्र की कथा है। चूँकि जयन्धर के पुत्र को नागों ने पाला था इसी कारण उसका नाम नागकुमार पड़ा था। धार्मिक वातावरण से युक्त इस कृति को प्रेमकथा कहा जा सकता है, जिसमें नायक के अनेक विवाहों तथा प्रेम के वर्णन हैं । राजा जयन्धर तथा पृथ्वी देवी के परिणय की कथा एक संक्षिप्त प्रेम कथा है। इसमें चित्र देखकर राजा की आसक्ति, पृथ्वी देवी का नखशिख वर्णन, विवाह, उद्यान में क्रीड़ा, सपत्नी-ईर्ष्या इत्यादि प्रसंगों के वर्णन हैं। इसी प्रकार नागकुमार का मनोहारी किन्नरी से विवाह, जलक्रीड़ा (संधि 3,6-8) के प्रसंग प्रेमकथात्मक हैं । निःसन्देह कृति की आत्मा प्रेमप्रधान काव्यात्मक है। यह जरूर है कि कवि ने उसे धार्मिक वातावरण से ढकने का प्रयास अवश्य किया है। डॉ. देवेन्द्र कुमार जैन इसे रोमाण्टिक कथा काव्य मानते
160. तत्त्वसार
धर्मप्रवर्तन और भव्यजनों के बोध के लिए इस तत्त्वसार ग्रन्थ की रचना की गई है। सकलकीर्ति की इस ग्रन्थ पर टीका है। इसमें 74 गाथायें हैं जिनमें तत्त्व के सार का प्ररूपण है। ध्यान से मोक्ष की सिद्धि बताई है
चरणरहिओमणुस्सो जह बंधइ मेरुसिहरमारुहिउं। तह झाणेण विहीणो इच्छइ कम्मक्खयंसाहू॥ जैसे बिना पाँव का कोई मनुष्य मेरु के शिखर पर चढ़ना चाहे, उसी प्रकार ध्यानविहीन साधुकर्मों के क्षय की इच्छा करता है। आत्मध्यान की मुख्यतया का प्रतिपादन करते हुए कहा है
लहइण भव्वो मोक्खंजावइ परदव्ववावडो चित्तो। उग्गतवं पिकुणंतो सुद्धे भावेलहुँलहइ॥
128 0 प्राकृत रत्नाकर