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________________ ज्ञानपंचमी घोषित कर इस शुभ दिवस पर शास्त्रों के पूजन, अर्चन, समार्जन, लेखन और लिखापन आदि का विधान किया है। सिद्धराज, कुमारपाल आदि राजा तथा वस्तुपाल और तेजपाल आदि मंत्रियों ने इस प्रकार के ज्ञानभंडारों की स्थापना कर पुण्यार्जन किया था। पाटण, जैसलमेर, खंभात, लिंबडी, जयपुर, ईडर आदि स्थानों में जैन भंडार स्थापित किये गये थे। यहाँ अनेक कहावतें भी दी गई हैं - मरइ गुडेणं चियतस्स विसं दिजए किंव ( जयसेणकहा)। - जो गुड़ देने से मर सकता है उसे विष देने की क्या आवश्यकता है ? नहु पहि पक्काबोरी छुट्टइ लोयाणा जाखजा।(जयसेणकहा) - यदि रास्ते में पके हुए बेर दिखाई दें तो उन्हें कौन नहीं खायेगा ? हत्थठियं कंकणयंको भणजोएह आरिसए? - हाथ कंगन को आरसी क्या ? - जिसे सम्पत्ति का गर्व नहीं छूता, उसके सम्बन्ध में कहा है - विहवेणजोन भुल्लइजो न वियारं करेइ तारुन्ने। सो देवाण विपुजो किमंग पुण मणुयोयस्स ॥ (नंदकहा) - जो संपत्ति पाकर भी अपने आपको नहीं भूलता और जिसे जवनी में विकार नहीं होता, वह मनुष्यों द्वारा ही नहीं, देवताओं द्वारा भी पूज्यनीय है। 158. णायाधम्मकहाओ(ज्ञाताधर्मकथा) __ अर्धमागधी आगम साहित्य के अंग ग्रन्थों में ज्ञाताधर्मकथा का छठा स्थान है। यह आगम दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त है। वस्तुतः ज्ञाताधर्मकथा में विभिन्न ज्ञात अर्थात् उदाहरणों तथा धर्मकथाओं के माध्यम से जैन धर्म के तत्त्व-दर्शन को समझाया गया है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में ज्ञातकथाएँ एवं द्वितीय श्रुतस्कन्ध में धर्मकथाएँ हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध 19 अध्ययन हैं, जिनमें न्याय, नीति आदि के सामान्य नियमों को दृष्टान्तों द्वारा समझाने का प्रयत्न किया गया है। इस श्रुतस्कन्ध में वर्णित कथाएँ लौकिक, ऐतिहासिक एवं काल्पनिक सभी प्रकार की 126 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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