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________________ हैं, जिनमें ग्रहों की राशि, स्थिति, उदय, अस्त और वक्र दिन की संख्या का वर्णन है। गणितद्वार में 38 गाथाएँ है और लग्नद्वार में 98 गाथाएँ हैं। यह ग्रन्थ रत्नपरीक्षादि सप्तग्रन्थसंग्रह नामक ग्रन्थ में राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर से प्रकाशित है। 148.जोइसदार(ज्योतिषद्वार) जोइसदार नामक प्राकृत भाषा की 2 पत्रों की कृति पाटन के जैन भंडार में है। इसके कर्ता का नाम अज्ञात है। इसमें राशि और नक्षत्रों से शुभाशुभ फलों का वर्णन किया गया है। 149.जोइसचक्कवियार(ज्योति चक्रविचार) जैन ग्रन्थावली (पृष्ठ 347) में जोइसचक्कवियार नामक प्राकृत भाषा की कृति का उल्लेख है। इस ग्रन्थ का परिमाण 155 ग्रन्थान है। इसके कर्ता का नाम विनयकुशल मुनि निर्दिष्ट है। 150. जोणिपाहुड(योनिप्राभृत) जोडिपाहुड निमित्तशास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ था। इसके कर्ता धरसेन आचार्य ईसी सन् की प्रथम और द्वितीय शताब्दी का मध्य है। वे प्रज्ञाश्रमण कहलाते थे। वि. सं. 1556 में लिखी हुई बृहटिप्पणिका नाम की ग्रंथसूची के अनुसार वीर निर्वाण के 600 वर्ष पश्चात् धरसेन ने इस ग्रंथ की रचना की थी। ग्रंथ को कूष्यमांडिनी देवी से प्राप्त कर धरसेन ने पुष्पदंत और भूतबलि नामके अपने शिष्यों के लिये लिखा था। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में भी इस ग्रंथ का उतना ही आदर था जितना दिगम्बर सम्प्रदाय में। धवलाटीका के अनुसार इसमें मंत्र-तंत्र की शक्ति का वर्णन है और इसके द्वारा पुद्गलानुभाग जाना जा सकता है। निशीथविशेषचूर्णि (4.1804पृ. 281) के कथनानुसार आचार्य सिद्धसेन ने जोणिपाहुड के आधार से अश्व बनाये थे, इसके बल से महिषों को अचेतन किया जा सकता था, और धन पैदा कर सकते थे। प्रभावकचरित (5.115-127) में इस ग्रंथ के बल से मछली और सिंह उत्पन्न करने की तथा विशेषावश्यकभाष्य (गाथा 1775) की हेमचन्द्र सूरिकृत टीका में अनेक विजातीय द्रव्यों के संयोग से सर्प, सिंह आदि प्राणी और मणि सुवर्ण आदि अचेतन पदार्थो के पैदा करने का प्राकृत रत्नाकर 0121
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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