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________________ पक्खीण सावयाण य विच्छोयंण करेइ जो पुरिसो। जीवेसु य कुणइ दयं तस्स अवच्चाई जीवंति॥... अर्थात् - पक्षियों के बच्चों का जो व्यक्ति वियोग नहीं करता है और जीवों पर दया करता है, उसकी संतति चिरंजीवी होती है। सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस ग्रन्थ में प्रचुर सामग्री है। युद्ध, विवाह, जन्म, उत्सवों आदि के वर्णन-प्रसंगों में तत्कालीन सामाजिक प्रथाओं और रीति-रिवाजों की झलक दृष्टिगत होती है। ___ इस चरित में केवल 54 महापुरुषों का वर्णन किया गया है। महापुरुषों के समुद्रित चरित्र को प्राकृत भाषा में वर्णन करने वाले उपलब्ध ग्रन्थों में इस ग्रन्थ का सर्वप्रथम स्थान है। संस्कृत-प्राकृत भाषाओं में एक कर्तृक की दृष्टि से भी यह ग्रन्थ सर्वप्रधान है। संस्कृत में इसके पूर्व महापुराण' मिलता है पर वह भी एक कर्तृक नहीं है। इसकी पूर्ति जिनसेन के शिष्य गुणभद्राचार्य ने की थी। सांस्कृतिक सामग्री की दृष्टि से इसमें युद्ध, विवाह, जन्म एवं उत्सवों के वर्णन में तत्कालीन प्रथाओं और रीति-रिवाजों के अच्छे उल्लेख मिलते हैं। इसमें चित्रकला और संगीतकला की अच्छी सामग्री दी गई है। इसकी भाषा, शैली आदि महाकाव्य के अनुरूप ही हैं। 114.चउप्पन्नमहापुरिसचरियं (द्वितीय)___ यह प्राकृत भाषानिबद्ध ग्रंथ 103 अधिकारों में विभक्त है। इसका मुख्य छन्द गाथा है। इसका श्लोक-परिमाण 10050 है जिसमें 8735 गाथाएँ और 100 इतर वृत्त हैं। यह ग्रंथ अब तक अप्रकाशित है। इसमें भी चौवन महापुरुषों के चरित्र का वर्णन है।ग्रंथ-समाप्ति पर उपसंहार में कहा गया है कि 54 में 9 प्रतिवासुदेवों को जोड़ने से तिरसेठ शलाकापुरुष बनते हैं। इसमें तीर्थंकरों के यक्ष-यक्षिणियों का उल्लेख है जो प्राचीनतम ग्रंथों में नहीं मिलता है। अतः सम्भावना की जा सकती है कि यह ग्रंथ शीलांक के चउप्पन्नमहापुरिसचरियं के बाद रचा गया होगा। 115.चंदप्पहचरियं प्राकृत भाषा में आठवें तीर्थकर चन्द्रप्रभ पर कई कवियों ने रचनाएँ की हैं। उनमें प्रथम रचना सिद्धसूरि के शिष्य वीरसूरि ने सं. 1138 में की थी। 100 0 प्राकृत रत्नाकर
SR No.002287
Book TitlePrakrit Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherRashtriya Prakrit Adhyayan evam Sanshodhan Samsthan
Publication Year2012
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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