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२५.५ वायुसुरभि मुद्रा सुरभि मुद्रा कर के दोनो अंगूठे के अग्रभाग को दोनो तर्जनी के मूल पर लगा कर वायु सुरभि मुद्रा बनती है। लाभ : • वायुसुरभि मुद्रा में वायु और अग्नि तत्त्व का संयोजन होने से वायु के दर्द में
राहत मिलती है। • मन की चंचलता दूर होकर स्थिरता प्राप्त होती है । • ध्यान के जप करनेवाले योगी के लिए महत्त्व की मुद्रा है । नोट : • सुरभिमुद्रा और इसके अलग अलग प्रकार बहुआयामी मुद्राएं है जिससे कईबार
विरोधी परिणाम आते है जैसे वायु का शमन होता है तो उष्णता बढ़ जाती है या वात के रोग दूर हो तो पेट या मूत्र के रोग की पीडा बढ़ जाती है, जल तत्त्व के रोग दूर हो तो पाचनक्रिया के रोग बढ जाते है । इसलिए प्रयोग करने वाले व्यक्ति को अपनी प्रकृति को समझकर परिणाम के अभ्यास को देखकर यह मुद्रा करनी चाहिए। यह मुद्रा करते वख्त समयसीमा का खास ख्याल रखना चाहिए । पहले २-२ मिनिट से शुरुकर अपनी प्रकृति के अनुसार और परिणाम के अनुसार ज्यादा समय कर सकते है।