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२५.४ शून्यसुरभि मुद्रा
सुरभिमुद्रा कर के दोनों अंगूठे के अग्रभाग को मध्यमा के मूल पर लगाकर बनती मुद्रा का नाम शून्य सुरभि मुद्रा है।
लाभ:
अंगूठे के अग्नितत्व का मध्यमा के आकाश तत्त्व के साथ संयोजन होने से बाह्य वातावरण से दूर होकर अंतर्मुखी बन सकते है ।
• नियमित अभ्यास से योगी, ब्रह्मनाद स्पष्टता से सुनकर उस में लीन रहता है।
शान्ति-आनंद-प्रफुल्लता के भाव का विकास होता है।
•
कान के कोई भी दर्द में राहत मिलती है।
इस मुद्रा का नियमित अभ्यास से साधक अपनी आंतरसमृध्धि बढ़ाकर विश्व के कोलाहल से दूर होकर अपने में ही लीन रहता है ।