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________________ १०.५ समानमुद्रा : पाँचो अंगुलियों के अग्रभाग को मिलाकर, हाथ सीधे, माने अंगुलियों के अग्रभाग को आसमान की और रखते हुए समान मुद्रा बनती है । इस मुद्रा से पाँचों तत्वों का संयोजन या समन्वय होता है इसलिए इस मुद्रा को समन्वयमुद्रा भी कहा जाता है। समानवायु दूसरे वायुओं के साथ पूरे शरीर में रहता है । लाभ: समानमुद्रा के अभ्यास से शरीर का समानवायु व्यवस्थित रुप से काम करता है। इस मुद्रा से सभी तत्त्वों का संतुलन होने से सब के साथ समन्वय के भाव बढ़ते हैं। अनिष्टता का निवारण होकर सात्त्विकता का विकास होता है। एक्युप्रेशर के हिसाब से मस्तिष्क और पिच्युटरी ग्रंथि के पोइन्ट दबते हैं जिससे उसका स्त्राव नियंत्रण में होकर शक्ति का विकास होता है । जप, अनुष्ठान और यज्ञ करते वख्त यह मुद्रा उस क्रिया के दरम्यान की जाती है।
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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