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________________ हाथ, पैर, हृदय या पिशाब की जलन दूर होती है I निम्न रक्तचाप (लो ब्लडप्रेशर) का नियमन होता है । गर्भाशय या नाभि अपनी जगह से हट जाये तब इस मुद्रा से अपने स्थान में आती है। कब्ज के रोग में राहत मिलती है । पेट के हरएक अवयव की क्षमता बढ़ती है और हृदय शक्तिशाली बनता है । शरीर के विष दूर होने से आध्यात्मिक निमर्लता आती है और सूक्ष्म और स्वच्छ परिस्थिति मानसिक स्तर पर निर्माण होती है । नोंध : इस मुद्रा के प्रयोग से मूत्र ज्यादा होता है पर इससे कोई नुकसान नहीं होता है • १०. ३ व्यानमुद्रा : मध्यमा के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाकर, मध्यमा के नाखून पर तर्जनी के अग्रभाग को रखकर, अंगूठे से हल्का सा दबाव देते हुए, बाकी की शेष अंगुलियाँ अनामिका और कनिष्ठिका सीधी रखते हुए व्यानमुद्रा बनती है । व्यानवायु पूरे शरीर में व्यापक रुप से फैला हुआ रहता है। खास तोर से दोनो नेत्र में, दोनो कान में, दोनो कंधे में और कंठ में सूक्ष्म रुप से रहता है । लाभ : व्यानमुद्रा व्यानवायु का संतुलन करती है इसलिए इस मुद्रा से व्यानवायु का कार्य ठीक से होता है । भगवान को भोग चढ़ाने के वख्त और यज्ञ करते समय व्यानः स्वाहाः शब्द का प्रयोग करते वख्त इस मुद्रा से आहुति दी जाती है । १९
SR No.002286
Book TitleMudra Vignan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNilam P Sanghvi
PublisherPradip Sanghvi
Publication Year
Total Pages66
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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