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________________ 64 श्राद्धविधि प्रकरणम् सुत्ता रवि उग्गमइ, तिहिं नरआऊ न ओअ ।।१।। अर्थः मजदूर लोग जो जलदी उठकर काम में लगे तो उनको धन मिलता है, धर्मीपुरुष जलदी उठकर धर्मकार्य करें तो उनको परलोक का श्रेष्ठ फल मिलता है, परन्तु जो सूर्योदय हो जाने पर भी नहीं उठते वे बल, बुद्धि, आयुष्य तथा धन को खो देते हैं ।।१।। निद्रावश होने से अथवा अन्य किसी कारण से जो पूर्व कहे हुए समय पर न उठ सके तो पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि में जघन्य से चौदहवें ब्राह्ममुहूर्त में (चार घडी रात्रि बाकी रहते) उठना। उठते ही द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से तथा भाव से उपयोग करना। यथा 'मैं श्रावक हूं, कि अन्य कोई हूं?' ऐसा विचार करना वह द्रव्य से उपयोग। 'मैं अपने घर में हूं कि दूसरे के घर? मेड़े [उपरी मंजिले पर हूं कि भूमितले?' ऐसा विचार करना वह क्षेत्र से उपयोग। 'रात्रि है, कि दिन है?' ऐसा विचार करना सो काल से उपयोग। 'काया के, मन के अथवा वचन के दुःख से मैं पीड़ित हूं कि नहीं?' ऐसा विचार करना सो भाव से उपयोग। इस प्रकार चतुर्विध उपयोग दिये पश्चात् निद्रा बराबर न गयी हो तो नासिका पकड़ के श्वासोश्वास रोके, जिससे निद्रा शीघ्र चली जाये, अनन्तर द्वार देखकर कार्य चिन्ता आदि करना। साधुकी अपेक्षा से ओघनियुक्ति में कहा है कि-द्रव्यादि उपयोग व श्वासोश्वास का निरोध करना। रात्रि में जो किसीको कुछ काम काज कहना हो तो वह मन्दस्वर से ही कहना, उच्च स्वर से खांसी,खंखार, हुंकार अथवा कोई भी शब्द न करना। कारण कि वैसा करने से छिपकली आदि हिंसक जीव जागकर मक्खी आदि क्षुद्र जीव पर उपद्रव करते हैं तथा पडौस के मनुष्य भी जागृत होकर अपना-अपना काम आरंभ करने लगते हैं, जैसे—पानी लाने वाली, रसोई बनाने वाली, व्यापारी, शोक करने वाली, मुसाफिर, कृषक, माली, रहेट चलानेवाला, घट्टा आदि यंत्र चलानेवाला, सिलावट, गांछी (सूत कांतनेवाला), धोबी, कुम्हार, लोहार, सुतार, जुआरी,शस्त्र बनानेवाला,कलाल,मांझी (धीवर),कसाई, पारधी, घातपात करनेवाला, परस्त्रीगामी, चोर, डाकू इत्यादि लोगों को परंपरा से अपने-अपने नीच व्यापार में प्रवृत्ति कराने का तथा अन्य भी बहुत से निरर्थक दोष लगते हैं। श्री भगवती सूत्र में कहा है कि-धर्मी पुरुष जागते तथा अधर्मी पुरुष सोते हों तो उत्तम है। इसी प्रकार श्री महावीर स्वामी ने वत्सदेश के राजा शतानीक की बहन जयन्ती को कहा है। निद्रा जाती रहे तब स्वरशास्त्र के ज्ञाता पुरुष को पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश इन पांच तत्त्वों में से कौनसा तत्त्व श्वासोश्वास में चलता है सो ज्ञात करना। कहा है कि—पृथ्वीतत्त्व और जलतत्त्व में निद्रा का छेद हो तो वह कल्याण के लिए है, परंतु आकाश वायु के अग्नितत्त्व में हो तो वह दुःखदायक है। शुक्ल पक्ष के प्रातःकाल में वाम (चंद्र) नाड़ी और कृष्ण पक्ष के प्रातःकाल में दक्षिण (सूर्य) नाड़ी उत्तम है। शुक्लपक्ष तथा कृष्णपक्ष में अनुक्रम से तीन दिन (पड़वा, बीज, तीज) तक प्रातःकाल
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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