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________________ 57 श्राद्धविधि प्रकरणम् गयी। चन्द्रशेखर अपने मूलस्वरूप में हो गया। किसी पुरुष की सर्व लक्ष्मी चली गयी हो उस प्रकार उद्विग्न, चिन्ताक्रान्त और हर्ष रहित होकर चोर की तरह चुपचाप बाहर निकलने लगा इतने में ही वास्तविक शुकराज वहां आया, मंत्री आदि सर्वलोगों ने उसका पूर्ण सत्कार किया। सर्व लोगों को केवल इतना ही ज्ञात हुआ कि कोई दुष्ट राजमंदिर में घुसा था परन्तु वह अभी भाग गया। इससे विशेष वृत्तान्त किसीने न जाना। इसके बाद विमलाचल तीर्थका प्रत्यक्ष फल देखनेवाला शुकराज नये तथा देदीप्यमान नाना प्रकार के विमान तथा अन्य बहुत से आडम्बर से सर्व मांडलिक राजा,स्वजनवर्गविद्याधर आदिके साथ अनुपम उत्सव करता विमलाचल की यात्रा को चला। अपना कुकर्म कोई नहीं जानता है यह विचारकर शीलवान् पुरुष की तरह लेशमात्र शंका न रखकर राजा चंद्रशेखर भी उत्सुकता से उसके साथ आया। वहां पहुंचकर शुकराज ने जिनेश्वर भगवान की पूजा, स्तुति तथा महोत्सवकर सबको सुनाकर कहा कि 'इस तीर्थ में मंत्र साधन करने से मैंने शत्रु पर विजय प्राप्त किया इसलिए सर्व बुद्धिमान् लोगों को इस तीर्थ का नाम 'शत्रुजय' प्रकट करना चाहिए।' इस प्रकार इस तीर्थ का नाम 'शत्रुजय' पड़ा और यह जगत् में अत्यंत प्रसिद्ध हो गया। ___ जिनेश्वर भगवान के दर्शन करके अपने दुष्कर्म की निंदा करते चंद्रशेखर को पश्चात्ताप हुआ। दुष्कर्म के क्षय से अपने महान उदय की इच्छाकर शुद्ध चित्त हो उसने महोदय नामक मुनि से अपने पाप प्रकटकर पूछा कि, 'हे मुनिराज! क्या किसी प्रकार मेरी शुद्धि हो सकती है? मुनिराज ने उत्तर दिया—'जो तू सम्यग् रीति से पाप की आलोचनाकर इस तीर्थ में तीव्र तपस्या करेगा तो तेरी शुद्धि हो जायेगी, कहा है कि जन्मकोटिकृतमेकहेलया, कर्म तीव्रतपसा विलीयते। किं न दाह्यमति बहवपि क्षणादुच्छिखेन शिखिनाऽत्र दह्यते? ॥१॥८८९।। तीव्र तपस्या करोडों जन्म के किये हुए कर्मों का क्षणमात्र में विनाश कर देती है। क्या प्रदीप्त अग्नि चाहे कितने ही काष्ठ को थोड़े ही समय में नहीं जला सकती? यह सुन चंद्रशेखर ने प्रथम उन्हीं के पास आलोचना की व दीक्षा ग्रहण की, तथा मासखमण आदि तपस्याकर वहीं वह मोक्ष में गया। शुकराज शत्रुरहित राज्य को भोगता हुआ जिनप्रणीत धर्मावलंबी, सम्यग्दृष्टि राजाओं में एक दृष्टांतरूप हो गया। उसने अट्ठाईयात्रा, रथयात्रा, तीर्थयात्रा ये तीनों प्रकार की यात्रा, अशन, पान, खादिम, स्वादिम इन चारों प्रकार से चतुर्विध संघ की भक्ति तथा जिनेश्वर भगवान की विविध प्रकार की पूजा इत्यादि धर्मकृत्य बार-बार किये। पट्टरानी पद्मावती, वायुवेगा अन्य बहुत सी राजपुत्रियां तथा विद्याधर की पुत्री इतनी उसकी रानियां थीं। रानी पद्मावती को साक्षात् लक्ष्मी के निवास स्थान पद्म सरोवर के समान पद्माकर नामक पुत्र हुआ तथा वायुवेगा रानी को नामानुसार
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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