SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 46 श्राद्धविधि प्रकरणम् बने तो ऐसा समझना चाहिए कि मानों जल में अग्नि लगी। माता-पिता में भी माता विशेष पूजनीय है। कारण कि पिता की अपेक्षा पुत्र के लिए माता ही अधिक कष्ट सहती है। ऊढो गर्भः प्रसवसमये सोढमप्युग्रशूलं, - पथ्याहारैः स्नपनविधिभिः स्तन्यपानप्रयत्नैः। विष्ठामूत्रप्रभृतिमलिनैः कष्टमासाद्य सद्यः, त्रातः पुत्रः कथमपि यया स्तूयतां सैव माता ।।१।। ६७८।। "जिसने गर्भ धारण किया, प्रसूति के समय अतिविषम वेदना सहन की तथा बाल्यावस्था में स्नान कराना, दूधपान का यत्न रखना, मल-मूत्रादिक साफ करना, योग्य भोजन खिलाना आदि बहुत प्रयास से जिसने रक्षण किया वह माता ही प्रशंसनीय है।' यह सुन शोक से सजल नेत्र होकर शुकराज कहने लगा कि, 'हे देवि! समीप आये हुए तीर्थको वन्दना किये बिना किस प्रकार जाऊं?' छेकेनाप्युत्सुकेनापि, कार्यमेव यथोचितम्। सद्धर्मकर्मावसरानुप्राप्तमिव भोजनम् ।।१।। ६८०।। चतुर मनुष्य को उचित है कि.चाहे कितनी ही उत्सुकता हो परन्तु प्रथम योग्य कार्य को अवश्य करे। जैसे समय पर भोजन करते हैं वैसे ही अवसर आ जाने पर धर्मकृत्य करना भी आवश्यकीय है। माता इस लोक में स्वार्थकरनेवाली है परन्तु यह तीर्थ तो इस लोक तथा परलोक दोनों में ही हितकर है; इसलिए उत्सुक होते हुए भी मैं इस तीर्थ को वन्दना करके वहां आऊंगा। तू माता से कहना कि 'मैं अभी आता हूं।' तदनुसार चक्रेश्वरी देवी ने शीघ्र ही जाकर कमलमाला को उक्त संदेश कह सुनाया। इधर शकराज ने वैताढ्य-पर्वत के तीर्थ पर आकर अत्यन्त आश्चर्यकारक शाश्वत-चैत्य में शाश्वती-जिन-प्रतिमा का पूजनकर अपना जन्म सफल माना। वापस आते समय दोनों नववधूओं को अपने साथ ली तथा दोनों श्वसुर और मातामह (नाना) गांगलि ऋषि की आज्ञा ले भगवान् ऋषभदेव को प्रणामकर विमान में बैठा, और बहुत से विद्याधरों का समुदाय साथ में ले धूमधाम से अपने नगर के समीप आया। उस समय संपूर्ण नगरवासी स्तुति करते हुए उसे देखने लगे।जैसेजयन्त इन्द्र की नगरी में प्रवेश करता है उसी प्रकार शकराज ने अपने पिता की नगरी में प्रवेश किया। पुत्र के कुशलपूर्वक आ जाने से हर्षित होकर राजा ने नगर में उत्सव किया। वर्षाकाल में जलवृष्टि की तरह बड़े लोगों का आनन्द भी सब जगह फैल जाता है। __ युवराज की तरह शुकराज राज्य कार्य देखने लगा। ठीक ही है, जो पुत्र समर्थ होते हुए भी पिता का राज्यभार हलका न करे वह क्या सुपुत्र हो सकता है? पुनः वसंत ऋतु का आगमन हुआ तब राजा दोनों पुत्रों को साथ में लेकर सपरिवार एक दिन उद्यान में गया। लज्जा छोड़कर सब लोग अलग-अलग क्रीड़ा करने लगे, इतने में ही
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy