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श्राद्धविधि प्रकरणम्
प्रशस्ति विख्याततपेत्याख्या, जगति जगच्चन्द्रसूरयोऽभूवन्।
श्रीदेवसुन्दरगुरुत्तमाश्च तदनु क्रमाद्विदिताः ।।१।। अर्थः इस जगत् में 'तपा' ऐसा प्रख्यात नाम धारण करनेवाले श्रीजगच्चन्द्रसूरि
हुए। उनके बाद अनुक्रम से प्रख्यात श्री देवसुन्दर गुरुवर्य हुए ॥१॥ पंच च तेषां शिष्यास्तेष्वाद्या ज्ञानसागरा गुरवः।
विविधावचूर्णिलहरिप्रकटनतः सान्वयाहानाः ।।२।। अर्थः उनके पांच शिष्य थे। जिनमें प्रथम शिष्य श्री ज्ञानसागर गुरु हुए। विविध
प्रकार की सूत्रों की अवचूर्णि रूपी लहरें प्रकट करके उन्होंने अपना ज्ञानसागर नाम सार्थक किया ॥२॥ श्रुतगतविविधालापक-समुद्धृताः समभवंश्च सुरीन्द्राः कुलमण्डना द्वितीयाः श्रीगुणरत्नास्तृतीयाश्च ।।३।।
शास्त्रस्थित विविध आलापक के उद्धार करनेवाले कुलमंडन नामक सुरीन्द्र दूसरे शिष्य और श्रीगुणरत्न नामक तीसरे शिष्य हुए ॥३॥ षड्दर्शनवृत्तिक्रिया-रत्नसमुच्चय-विचारनिचयसृजः। श्रीभुवनसुन्दरादिषु, भेजुर्विद्यागुरुत्वं ये ॥४॥ वे श्री गुणरत्न गुरुवर्य षड्दर्शनसमुच्चयवृत्ति क्रियारत्नसमुच्चय और विचारसमुच्चय ग्रन्थों के रचयिता और श्रीभुवनसुन्दर आदि आचार्यों के विद्यागुरु हुए ॥४॥ श्रीसोमसुन्दरगुरु-प्रवरास्तुर्या अहार्यमहिमानः।
येभ्यः सन्ततिरुच्च-रभवद् द्वेधा सुधर्मेभ्यः ।।५।। अर्थः उत्कृष्ट महिमावन्त श्रीसोमसुन्दर गुरुवर्य चौथे शिष्य हुए। इन द्रव्य से
तथा भाव से श्रेष्ठ धर्मात्मा गुरुवर्य से बहुत शिष्य संतति बढ़ी ।।५।। यतिजीतकल्पविवृतश्च पञ्चमाः साधुरत्नसूरिवराः।
यैमाडशोऽप्यकृष्यत, करप्रयोगेण भवकूपात् ।।६।। अर्थः यतिजीतकल्प की व्याख्या करनेवाले श्रीसाधुरत्न सूरिवर पांचवें शिष्य
हुए, जिन्होंने हाथ लम्बा करके मेरे समान सामान्य व्यक्ति का संसाररूपी कुए में से उद्धार किया ।।६।। श्रीदेवसुन्दरगुरोः, पट्टे श्रीसोमसुन्दरगणेन्द्राः।
युगवरपदवी प्राप्ता-स्तेषां शिष्याश्च पञ्चैते ।।७।। अर्थः श्री देवसुन्दर गुरु के पाट पर श्रीसोमसुन्दर गुरु हुए। उनके युगप्रधान
पदवी पाये हुए ये पांच शिष्य हुए ।।७।।
अर्थः