SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 27 श्राद्धविधि प्रकरणम् देवताओं ने रची हुई वस्तु चिरकाल तक भी रहती है। प्रातःकाल होते ही श्री श्रुतसागरसूरिजी, राजा जितारि, सिंह मंत्री, रानियां तथा संघ के अन्य सब लोग परस्पर स्वप्न की चर्चा करने लगे। सबके स्वप्न एक समान मिले, तब सब लोग आगे बढ़े, और स्वप्न के अनुसार वहीं शत्रुजय तीर्थ को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। सबने श्री ऋषभदेव भगवान् की वंदनापूर्वक पूजाकर अपना अभिग्रह पूर्ण किया। उस समय श्री ऋषभदेव भगवान् के दर्शन से उत्पन्न हुए हर्ष से उनका शरीर पुलकायमान हो गया तथा सुकृतरूपी अमृत में उनकी आत्मा निमग्न हो गयी। तत्पश्चात् सबने स्नात्र पूजा की, ध्वजा चढ़ायी, माला पहनायी तथा अन्य धर्मकृत्य करके वहां से विदा हुए। ___राजा वहां से चला तो सही किन्तु भगवान् की गुणरूपी मोहिनी से आकर्षित होकर पुनः वन्दना करने को फिरा। इस प्रकार मानो सात नरक रूपी दुर्गति में पड़ने से आत्मा का रक्षण करने के हेतु सात बार मार्ग चला और सात बार भगवान् को वन्दना करने के लिए वापस लौटा। यह देखकर सिंह मंत्री ने राजा से प्रश्न किया कि, 'हे महाराज! यह क्या है?' राजा ने उत्तर दिया कि-बालक जिस प्रकार माता को नहीं छोड़ सकता वैसे ही मैं इस तीर्थराज को नहीं छोड़ सकता, अतएव मेरे यहीं रहने के लिए एक उत्तम नगर की रचना करो, सच है ऐसा मन वांछित स्थान कौन बुद्धिमान् छोड़ सकता बुद्धिमान् मंत्री ने अपने स्वामी की आज्ञा पाते ही वास्तुक-शास्त्र में वर्णित रीति के अनुसार 'विमलपुर' नामक नगर बसाया। इस नगर में किसी प्रकार का भी कर आदि नहीं लिया जाता था। अतः संघ में से अन्य भी बहुत से मनुष्य स्वार्थ तथा तीर्थकृत्य की साधना के हेतु वहां बस गये। राजा जितारि भी उत्तम राज्य-ऋद्धि का भोग करता हुआ द्वारिका में कृष्ण की तरह सुख से रहने लगा। वहां भगवान् के मंदिर ऊपर एक हंस सदृश मधुरभाषी तोता रहता था। वह राजा के मन को बहुत रिझाने लगा, इससे वह राजा का एक खिलौना हो गया। अरिहंत प्रभु के मंदिर में जाने पर भी राजाका अरिहंत ध्यान धूएं से मलीन हुए चित्रों की तरह तोते के क्रीड़ारस से मलीन हो गया। कुछ समय जाने पर राजा जितारि का अंतकाल आया तब उसने धर्मी लोगों की रीति के अनुसार श्री ऋषभदेव भगवान् के चरण-कमलों के पास अनशन किया। उस समय हंसी और सारसी ने धैर्य धारणकर राजा की शुश्रूषा की तथा उसे नवकार मंत्र सुनाया। उसी समय पूर्व परिचित तोते ने मंदिर के शिखर पर बैठकर मधुर ध्वनी की। कर्म की विचित्रगति से राजा का ध्यान उस तरफ चला गया और अंत में तोते के ध्यान से राजा तोते की ही योनि में उत्पन्न हुआ। जिस तरह अपनी ही छाया का उल्लंघन करना अशक्य है उसी तरह भवितव्यता का भी उल्लंघन नहीं किया जा सकता। पंडित लोगों ने कहा है कि 'अंते जैसी मति, वैसी गति', इसी उक्ति के अनुसार राजा जितारि तोता हुआ। जिनेश्वर भगवान् ने कहा है
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy