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श्राद्धविधि प्रकरणम् इतने लोगों का पड़ौस सर्वथा त्याज्य है। तथा इनके साथ मित्रता भी न करनी चाहिए। वैसे ही देवमंदिर के पास घर हो तो दुःख होता है, बाजार में हो तो हानि होती है और ठग अथवा प्रधान के पास हो तो पुत्र तथा धन का नाश होता है। अपने हित के चाहनेवाले बुद्धिशाली पुरुष को चाहिए कि, मूर्ख, अधर्मी, पाखंडी, पतित, चोर, रोगी, क्रोधी, चांडाल, अहंकारी, गुरुपत्नी को भोगनेवाला, वैरी, अपने स्वामी को ठगनेवाला, लोभी और मुनिहत्या, स्त्रीहत्या अथवा बालहत्या करनेवाला इनके पड़ोस का त्याग करना। असदाचारी पड़ौसी हो तो उनके वचन सुनने से तथा उनकी चेष्टा देखने से मनुष्य सद्गुणी हो, तो भी उसके गुण की हानि होती है। पड़ौसिन ने जिस खीर सम्पादन करके दी उस संगमनामक शालिभद्र के जीव को उत्तम पड़ौसी के दृष्टान्त के स्थान में तथा पर्व के दिन मुनि को वहोरानेवाली पड़ौसिन के सास-श्वसुर को झूठमूठ समझानेवाली सोमभट्ट की स्त्री को खराब पड़ौसिन को दृष्टान्त स्थान में जानना। . अतिशय प्रकट स्थान में घर करना ठीक नहीं। कारण कि, आसपास दूसरे घर न होने से तथा चारों ओर मेदान होने से चोर आदि उपद्रव करते हैं। अतिशय घनी बसतीवाले गुप्त स्थान में भी घर होना ठीक नहीं। कारण कि, चारों तरफ दूसरे घरों के होने से उस घर की शोभा चली जाती है। वैसे ही आग आदि उपद्रव होने पर झट से अन्दर जाना व बाहर आना कठिन हो जाता है। घर के लिए शल्य, भस्म, खात्र आदि दोषों से रहित तथा निषिद्धआय से रहित ऐसा उत्तम स्थान होना चाहिए। इसी प्रकार दूर्बा, वृक्षांकुर, डाभ के गुच्छे आदि जहां बहुत हों तथा सुन्दर रंग व उत्तम गंधयुक्त माटी,मधुरजल तथा निधान आदि जिसमें हो, ऐसा स्थान होना चाहिए। कहा है कि-उष्णकाल में ठंडे स्पर्शवाली तथा शीतकाल में गरम स्पर्शवाली तथा वर्षाऋतु में समशीतोष्ण स्पर्शवाली भूमि सबको सुखकारी है। एक हाथ गहरी भूमि खोदकर वापिस उसी मिट्टी से उसे पूर देना चाहिए। जो मिट्टी बढ़ जावे तो श्रेष्ठ, बराबर होवे तो मध्यम और घट जावे तो उस भूमि को अधम जानना। जिस भूमि में गड्डा खोदकर जल भरा हो तो वह जल सो पग जाये तब तक उतना ही रहे तो वह भूमि उत्तम है। एक अंगुल कम हो जाये तो मध्यम और इससे अधिक कम हो जावे तो अधम जानना, अथवा जिस भूमि के गढे में रखे हुए पुष्प दूसरे दिन वैसे ही रहें तो उत्तम, आधे सूख जाए तो मध्यम और सब सूख जावें तो उस भूमि को अधम जानना। जिस भूमि में बोया हुआ डांगर आदि धान्य तीन दिन में ऊग जावे वह श्रेष्ठ, पांच दिन में ऊगे वह मध्यम
और सात दिन में ऊगे उस भूमि को अधम जानना। भूमि वल्मीकवाली हो तो व्याधि, पोली हो तो दारिद्र, फटी हुई हो तो मरण और शल्यवाली हो तो दुःख देती है। इसलिए शल्य की बहुत ही प्रयत्न से तपास करना, मनुष्य की हड्डी आदि शल्य निकले तो उससे मनुष्य की ही हानि होती है, गदहे का शल्य निकले तो राजादिक से भय उत्पन्न होता है, कुत्ते का शल्य निकले तो बालक का नाश हो। बालक का शल्य निकले तो