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श्राद्धविधि प्रकरणम्
चरित्र जानेगा।
अनन्तर उन रत्नों के प्रभाव से राजकुमार सर्वत्र यथेष्ट विलास करता रहा। एक समय पड़ह का उद्घोष सुनने से उसे ज्ञात हुआ कि -'कुसुमपुर का राजा देवशर्मा आंख के दर्द से तीव्र वेदना भोग रहा है।' तदनुसार उसने शीघ्र वहां जाकर रत्न के प्रभाव से नेत्र पीड़ा दूर की। राजा ने प्रसन्न होकर राजकुमार को अपना राज्य तथा पुण्यश्री नामक कन्या देकर स्वयं दीक्षा ग्रहण कर ली, पश्चात् उसके (राजकुमार के ) पिता ने भी उसे राज्य देकर दीक्षा ली। इस प्रकार राजकुमार दो राज्य भोगने लगा। एक समय त्रिज्ञानी देवशर्माराजर्षि ने कुमार को पूर्वभव का वृत्तान्त कहा । यथा -क्षेमापुरी में सुव्रत नामक श्रेष्ठ था, उसने गुरु के पास अपनी शक्ति के अनुसार चतुर्मास संबंधी नियम लिये थे। उसका एक नौकर था, वह भी प्रत्येक वर्षाकाल के चातुर्मास में रात्रिभोजन तथा मद्यमांसादि सेवन का नियम करता था। मरने पर वही चाकर तू राजकुमार हुआ है, और सुव्रत श्रेष्ठी का जीव महान् ऋद्धिशाली देवता हुआ है। उसने पूर्वभव की प्रीति से तुझे दो रत्न दिये। इस प्रकार पूर्वभव सुनकर कुमार को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। तथा वह अनेक प्रकार के नियमों का पालन करके स्वर्ग को गया । वहां से च्यवनकर महाविदेह में सिद्ध होगा इत्यादि ।
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लौकिक ग्रंथ में भी यह बात कही है । यथा - वशिष्ठ ऋषि ने पूछा कि - 'हे ब्रह्मदेव ! विष्णु क्षीरसमुद्र में किस प्रकार निद्रा लेते हैं? और वे निद्रा लें उस समय कौनसी - कौनसी चीजों का त्याग करना ? और उन वस्तुओं के त्याग से क्या-क्या फल होता है?' ब्रह्मदेव ने उत्तर दिया- 'हे वशिष्ठ! विष्णु वास्तव में निद्रा नहीं लेते और जागृत भी नहीं होते, परन्तु वर्षाकाल आने पर भक्ति से विष्णु को ये सर्व उपचार किये जाते हैं, विष्णु योगनिद्रा में रहे, तब किन-किन वस्तुओं का त्याग करना सो सुन - जो मनुष्य चातुर्मास में देशाटन न करे, माटी न खोदे तथा बैंगन, चवला, वाल, कुलथी, तूवर, कालिंगडा, मूली और चवलाई (तांदला की भाजी) इन वस्तुओं का त्याग करे, तथा हे वशिष्ठ! जो पुरुष चातुर्मास में एक अन्न खावे, वह पुरुष चतुर्भुज होकर परमपद को जाता है। जो पुरुष नित्य तथा विशेषकर चातुर्मास में रात्रिभोजन न करे, वह इसलोक में तथा परलोक में सर्व अभीष्ट वस्तु पाता है। जो पुरुष चातुर्मास में मद्यमांस का त्याग करता है, वह प्रत्येक मास में सो वर्ष तक किये हुए अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य प्राप्त करता है।' इत्यादि...
भविष्यपुराण में भी कहा है कि- 'हे राजन्! जो पुरुष चातुर्मास में तैलमर्दन (अभ्यंग) नहीं करता, वह बहुत से पुत्र तथा धन पाता है, और नीरोगी रहता है। जो पुरुष पुष्पादिक के भोग को छोड़ देता है, वह स्वर्गलोक में पूजा जाता है। जो पुरुष कड़वा, खट्टा, तीक्ष्ण, तूरा, मीठा, खारा इन रसों का त्याग करता है, वह पुरुष कभी भी दुर्भाग्य व कुरूपता नहीं पाता। तांबूल भक्षण का त्याग करे तो भोगी होता है और शरीरलावण्य पाता है। जो फल, शाक और पत्तों का शाक ( भाजीपाला ) त्यागता है