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________________ 326 श्राद्धविधि प्रकरणम् हाथ, पैर तथा मुख का पडिलेहणकर एक नवकार गिनकर राग द्वेष न रखते प्रासुक भोजन करे। अथवा प्रथम से ही कह रखे हुए स्वजन का लाया हुआ भोजन करे, किन्तु भिक्षा न मांगे। पश्चात् पौषधशाला में जाकर इरियावही प्रतिक्रमणकर, देववन्दनकर, वांदणा दे। तिविहारअथवा चउविहार का पच्चक्खाण करे। जो शरीर चिन्ता करना हो तो, 'आवस्सई' कहकर साधु की तरह उपयोग रखता हुआ जीव रहित शुद्धभूमि में जाकर, विधि के अनुसार मलमूत्र का त्यागकर, शुद्धताकर पौषधशाला में आवे। पश्चात् इरियावही प्रतिक्रमणकर एक खमासमण देकर कहे कि, 'इच्छाकरेण संदिसह भगवन्! गमणागमणं आलोउं?' पश्चात् 'इच्छं' कहकर 'आवस्सइ' करके वसति से पश्चिम तथा दक्षिणदिशा को ज़ाकर दिशाओं को देखकर 'अणुजाणह जस्सुग्गहो' ऐसा कहकर पश्चात् संडासग और स्थंडिल प्रमार्जन करके बड़ीनीति तथा लघुनीति वोसिराइ (त्याग की) तत्पश्चात् 'निसीहि' कहकर पौषधशाला में प्रवेश करे। और 'आवतजंतेहि जंखंडिअंजं विराहिअंतस्स मिच्छा मि दुक्कड' ऐसा कहे। पश्चात् पिछला प्रहर हो तब तक स्वाध्याय करे। तत्पश्चात् एक खमासमण देकर पडिलेहण का आदेश मांगे। दूसरा खमासमण देकर पौषधशाला का प्रमार्जन करने का आदेश मांगे, पश्चात् श्रावक को मुंहपत्ति, आसन, पहनने के वस्त्र की पडिलेहणा करना, और श्राविका को मुंहपत्ति, आसन, घाघरा,कांचली और ओढ़े हुए वस्त्रकी पडिलेहणा करना। पश्चात् स्थापनाचार्य की पडिलेहणाकर, पौषधशाला का प्रमार्जनकर, एक खमासमण दे उपधि मुंहपत्ति का पडिलेहणकर एक खमासमण दे मंडली में घुटनों पर बैठकर सज्झाय करे। पश्चात् वांदणा देकर पच्चक्खाण करे। दो खमासमण देकर उपधि पडिलेहणा का आदेश मांगे। पश्चात् वस्त्र, कम्बली आदि की पडिलेहणा करे। जो उपवास किया होवे तो सर्व उपधि के अन्तमें पहनने का वस्त्र पडिलेहे। श्राविका तो प्रभात की तरह उपधि का पडिलेहण करे। सन्ध्या की कालवेला हो, तब शय्या के अन्दर तथा बाहर बारह-बारह बार मूत्र तथा स्थंडिल की भूमि का पडिलेहण कर ले। (मांडला पडिलेहे) पश्चात् देवसी प्रतिक्रमण करके योग हो तो साधु की सेवाकर एक खमासमण दे पोरिसी हो तब तक स्वाध्याय करे। पोरिसी पूर्ण होने पर एक खमासमण दे 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! बहुपडिपुन्ना पोरिसी राइसंथारए ठामि' ऐसा कहे। पश्चात् देव वांदी, मलमूत्र की शंका हो तो तपासकर सर्व उपधि का पडिलेहणकर ले। घुटनों पर संथारे का उत्तरपटा डालकर जहां पैर रखना हो वहां की भूमि का प्रमार्जन करके धीरे धीरे बिछावे पश्चात् 'महाराज आदेश आपो' यह कहता हुआ संथारे पर बैठकर नवकार के अन्तर से तीन बार 'करेमि भंते! सामाइअं' कहे। पश्चात् ये चार गाथाएं कहे अणुजाणह परमगुरू गुणगणरयणेहिं भूसिअसरीरा! . बहुपडिपुन्ना पोरिसि, राईसंथारए ठामि ।।१।। अणुजाणह संथारं, बाहुवहाणेण वामपासेण। कुक्कुडिपायपसारण अतरंत पमज्जए भूमिं ।।२।।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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