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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 311 अर्थः ....पश्चात् पूर्वोक्त विधि के अनुसार देवसीप्रतिक्रमण वंदनादिक करना। उसमें सिज्जसुरी का काउस्सग्ग' और अजितशांतिस्तव पाठ में कहना इतना फेरफार है ॥३१॥ एवं चिअ चठमासे, वरिसे अजहक्कम विही णेओ। पक्खचठमासवरिसे-सु नवरि नामंमि नाणत्तं ।।३।। अर्थः इसी प्रकार चौमासी तथा संवत्सरी प्रतिक्रमण की विधि जानना, उसमें इतना विशेष कि, पक्खीप्रतिक्रमण हो तो 'पक्खी' चौमासी होवे तो 'चौमासी' और संवत्सरी हो तो 'संवत्सरी' ऐसे भिन्न-भिन्न नाम आते हैं ॥३२॥ तह उस्सग्गोज्जोआ, बारस वीसा समंगलं चत्ता। संबुद्धखामणं तिपणसत्तसाहूण जहसंखं ।।३३।। अर्थः उसी प्रकार पक्खी के काउस्सग्ग में बारह, चौमासी के काउस्सग्ग में बीस और संवत्सरी के काउस्सग्ग में चालीस लोयस्स का काउस्सग्ग नवकार सहित चिंतन करना। तथा संबुद्धखामणेणं पक्खी, और चौमासी और संवत्सरी में क्रमशः तीन, पांच तथा सात साधुओं को अवश्य करना ॥३३॥ हरिभद्रसूरिकृत आवश्यकवृत्ति में वन्दनकनियुक्ति के अन्दर आयी हुई 'चत्तारि पडिक्कमणे' इस गाथा की व्याख्या के अवसर में संबुद्धखामण के विषय में कहा है कि, देवसीप्रतिक्रमण में जघन्य तीन, पक्खी तथा चौमासी में पांच और संवत्सरी में सात साधुओंको अवश्य खमाना। प्रवचनसारोद्धारकी वृत्ति में आयी हुई वृद्धसामाचारी में भी ऐसा ही कहा है। प्रतिक्रमण के अनुक्रम का विचार पूज्य श्रीजयचन्द्रसूरिकृत प्रतिक्रमणगर्भहेतु नामक ग्रन्थ में से जान लेना चाहिए। साधु सेवा : उसी तरह आशातना टालना आदि विधि से मुनिराज की अथवा गुणवान तथा अतिशय धर्मिष्ठ श्रावक आदि की विश्रामणा (सेवा) करे। विश्रामणा यह उपलक्षण है, इसलिए सुखसंयम यात्रा की पृच्छा आदि भी करे, पूर्वभव में पांचसो साधुओं की सेवा करने से चक्रवर्ती की अपेक्षा अधिक बलवान हुए बाहुबलि आदि के दृष्टान्त से सेवा का फल विचारना। उत्सर्ग मार्ग से देखते साधुओं को किसीसे भी सेवा नहीं कराना चाहिए। कारण कि, 'संवाहणा दंतपहोअणा अ यह आगमवचन से निषेध १. इस सूत्र के रचनाकाल में पाक्षिक प्रतिक्रमण में भुवन देवता का एक काउस्सग्ग करने का विधान किया है और वह भी काउस्सग्ग ही लिखा है, स्तुति का विधान नहीं किया। अर्थात् विधियों में अनेक प्रकार से परावर्तन हुआ है।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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