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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 303 प्रकाश-२ : रात्रिकृत्य दिनकृत्य के अनन्तर श्रावक मुनिराज के पास अथवा पौषधशाला आदि में जाकर यतना से प्रमार्जना करके सामायिक आदि षडावश्यक रूप प्रतिक्रमण विधि सहित करे, उसमें स्थापनाचार्य की स्थापना, मुहपत्ति, चरवला आदि धर्मोपकरण ग्रहण करना तथा सामायिक करना इत्यादि, इसकी विधि का वर्णन मूलग्रंथकार रचित श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति में किया है। श्रावक ने सम्यक्त्वादिक के सर्वातिचार की शुद्धि के निमित्त तथा भद्रकपुरुष ने अभ्यासादिक के निमित्त प्रतिदिन दो बार अवश्य प्रतिक्रमण करना चाहिए। भद्रक परिणामी श्रावक को भी तीसरे वैद्य के रसायनऔषध के समान है, अतएव अतिचार न लगे हों तो भी श्रावक को यह अवश्य करना चाहिए। सिद्धांत में कहा है कि प्रथम और अंतिम तीर्थंकरों के शासन में प्रतिक्रमण प्रतिदिन करने का आवश्यक है, और मध्य के बाईस तीर्थंकरों के शासन में कारण हो तो प्रतिक्रमण कहा है, 'कारण हो तो' याने मध्यमतीर्थकर के काल में अतिचार लगा हो तो मध्याह्न को ही प्रतिक्रमण करे, और न लगा हो तो पूर्व क्रोड़ वर्ष तक भी न करे। औषधि तीन प्रकार की कही है, यथाः-१ प्रथम वैद्य की औषधि व्याधि होवे तो मिटावे और न हो तो नवीन उत्पन्न करे। २ दूसरे वैद्य की औषधि व्याधि हो तो मिटावे, परन्तु न हो तो नयी पैदा न करे।३ तीसरे वैद्यकी औषधि रसायन अर्थात् पूर्वव्याधि हो तो उसे मिटावे और व्याधि न हो तो सर्वांग को पुष्ट करे तथा सुख व बल की वृद्धि करे; तथा भविष्य में होनेवाली व्याधि को रोके। उपरोक्त तीनों प्रकार में प्रतिक्रमण तीसरे वैद्य के रसायन-औषधि के समान है, जिससे वह अतिचार लगे हों तो उनकी शुद्धि करता है, और न लगे हों तो चारित्र धर्म की पुष्टि करता है। शंकाः आवश्यकचूर्णि में कही हुई सामायिक विधि ही श्रावक का प्रतिक्रमण है, कारण कि, छः प्रकार का प्रतिक्रमण दो बार अवश्य करना यह सब इसीमें आ जाता है। यथा-प्रथम एक सामायिक कर, पश्चात् क्रम से २ इरियावही, ३ कायोत्सर्ग, ४ चोवीसत्थो, ५ वंदन और ६ पच्चक्खाण करने से छः आवश्यक पूरे होते हैं। इसी प्रकार 'सामाइयमुभयसंझं ऐसा वचन है, जिससे प्रातःव.संध्या को करना ऐसा भी निश्चय होता है। समाधान : उपरोक्त शंका ठीक नहीं। कारण कि, सामायिकविधि में छः आवश्यक और कालनियम सिद्ध नहीं होते। वे इस प्रकार-तुम्हारे (शंकाकार के) अभिप्राय के अनुसार भी चूर्णिकार ने सामायिक, इरियावही प्रतिक्रमण और वंदन ये तीन ही प्रकट दिखाये हैं; शेष नहीं दिखाये। उसमें भी इरियावही प्रतिक्रमण कहा है, वह गमनागमन संबंधी है, परंतु आवश्यक के चौथे अध्ययन के रूप में नहीं। कारण कि, गमनागमन
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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