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श्राद्धविधि प्रकरणम्
275 करनेवाला यह कुमार, जैसे गरुड़ चारों ओर दौड़नेवाले सर्पो का मद उतारता है वैसे ही तुम्हारा मदोन्मत्त की तरह अहंकार क्षणमात्र में उतारेगा। जो इस कुमार को क्रोध चढ़ेगा तो युद्ध की बात तो दूर रही! परंतु तुमको भागते-भागते भी भूमि का अंत न मिले।' विद्याधर के सुभट वीरपुरुष के समान तोते की ऐसी ललकार सुनकर घबराये, चकित हुए, डर गये और मन में सोचने लगे कि यह कोई देवता अथवा भवनपति तोते के रूप में बैठा है। यदि ऐसा न होता तो यह इस प्रकार विद्याधरों को भी ललकार से कैसे बोलता? कुमार कैसा भयंकर है? कौन जाने? आज तक विद्याधरों के भयंकर सिंहनाद भी हमने सहन किये हैं, परन्तु आज एक तोते की यह तुच्छ ललकार हमसे क्यों नहीं सहन होती है? जिसका तोता भी ऐसा शूरवीर है कि जो विद्याधरों तक को भय उत्पन्न करवाता है तो वह कुमार कौन जाने कैसा होगा? युद्ध में निपुण होने पर भी अपरिचित के साथ कौन युद्ध करे? कोई तैरने का अहंकार रखता हो तो भी क्या वह अपारसमुद्र को तैर सकता है?' ___ भयभीत हुए, आकुल व्याकुल हुए और पराक्रम से भ्रष्ट हुए समस्त विद्याधर सुभट तोते की ललकार सुनते ही उपरोक्त विचारकर शियालियों की तरह भाग गये! जैसे बालक पिता के पास जाकर कहते हैं वैसे उन सुभटों ने भी अपने राजा के पास जाकर संपूर्ण वृत्तान्त कहा। सुभटों का वचन सुनते ही विद्याधर राजा के नेत्र क्रोध से रक्त हो गये और बिजली के समान इधर-उधर चमक मारने लगे और ललाट पर चढ़ाई हुई भौंहे से उसका मुख भयंकर दिखने लगा। पश्चात् उस सिंह समान बलिष्ठ व कीर्तिमान् राजा ने कहा कि, 'हे सुभटों! शूरवीरता का अहंकार रखते हुए वास्तव में कायर और अकारण डरनेवाले तुमको धिक्कार है! तोता, कुमार अथवा कोई अन्य देवता वा भवनपति वह क्या चीज़ है? हे दरिद्रियों! तुम अब मेरा पराक्रम देखो।'
इस प्रकार से उच्चस्वर से धिक्कार वचन कहकर उसने दश मुंह व बीस हाथवाला रूप प्रकट किया। एक दाहिने हाथ में शत्रु के कवच को सहज में काट डालनेवाला खड्ग, और एक वाम हाथ में ढाल, एक हाथ में मणिधर सर्प सदृश बाणों का समूह और दूसरे हाथ में यम के बाहुदंड की तरह भय उत्पन्न करनेवाला धनुष, एक हाथ में मानो अपना उसका मूर्तिमन्त यश ही हो ऐसा गंभीरस्वरवाला शंख
और दूसरे हाथ में शत्रु के यशरूपी नाग (हाथी) को बंधन में डालनेवाला नागपाश, एक हाथ में यमरूप हाथी के दंतसमान शत्रुनाशक माला और दूसरे हाथ में भयंकर फरसी, एक हाथ में पर्वत के समान विशाल मुद्गर और दूसरे हाथ में भयानक पत्रपाल, एक हाथ में जलती हुई कांतिवाला भिंदिपाल और दूसरे हाथ में अतितीक्ष्ण शल्य, एक हाथ में महान भयंकर तोमर और दूसरे हाथ में शत्रु को शूल उत्पन्न करनेवाला त्रिशूल, एक हाथ में प्रचंड लोहदंड और दूसरे हाथ में मानो अपनी मूर्तिमंत शक्ति ही हो ऐसी शक्ति, एक हाथ में शत्रु का नाश करने में अतिनिपुण पट्टिश और दूसरे हाथ में किसी रीति से फूट न शके ऐसा दुस्फोट, एक हाथ में बैरी लोगों को