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________________ 219 श्राद्धविधि प्रकरणम् पर पुत्र का मांस भक्षण कर लेना श्रेष्ठ, पर राजा के पास से दान न लेना चाहिए। कुम्भकार के पास से दान लेना दश हिंसा के समान, ध्वज (कलार)के पास से दान लेना सो हिंसा के समान, वेश्या के पास से दान लेना एक हजार हिंसा के समान और राजा के पास से लेना दश हजार हिंसा के समान है। स्मृति, पुराण आदि के वचनों से राजा के पास से दान लेने में ऐसे दोष कहे हैं, इसलिए मैं राजदान नहीं लेता। तब मंत्री ने कहा, 'राजा अपने बाहुबल से न्यायपूर्वक उपार्जन किया हुआ द्रव्य ही तुमको देगा, उसे लेने में कोई दोष नहीं है।' इत्यादि अनेक प्रकार से समझाकर मन्त्री उस सुपात्रब्राह्मण को राजा के पास ले गया। राजा ने हर्षित हो उस ब्राह्मण को बैठने के लिए अपना आसन दिया, पग धोकर विनयपूर्वक उसकी पूजा की और पूर्वोपार्जित न्यायोपार्जित आठ द्रम्म उसे दक्षिणा के तौर पर गुप्त रीतिसे उसकी मुट्ठी में दिए। दूसरे ब्राह्मणों को यह देखकर कुछ रोष आया। उनके मन में यह भ्रम हुआ कि,'राजा ने इसे गुप्त रीति से कुछ श्रेष्ठ वस्तु दे दी है।' पश्चात् राजा ने स्वर्ण आदि देकर अन्य ब्राह्मणों को सन्तुष्ट किया। अन्य सब ब्राह्मणों का राजा ने दिया हुआ द्रव्य किसीका छः मास में, तो किसीका इससे कम अधिक अवधि में खर्च हो गया। परन्तु सुपात्रब्राह्मण को दिए हुए आठ द्रम्म अन्नवस्त्रादि के कार्य में खर्च करने पर भी न्यायोपार्जित होने के कारण कम न हुए, बल्कि अक्षयनिधि की तरह तथा खेत में बोये हुए श्रेष्ठ बीज की तरह बहुत काल तक लक्ष्मी की वृद्धि ही करनेवाले होते रहे इत्यादि। १ न्यायोपार्जित धन और सुपात्रदान इन दोनों के योग से चौभंगी (चार भांगे) होती हैं। जिसमें १ न्यायोपार्जित धन और सुपात्रदान इन दोनों के योग से प्रथम भंग होता है, यह पुण्यानुबंधिपुण्य का कारण होने से इससे उत्कृष्ट देवतापन, तथा समकित आदि का लाभ होता है, और ऐसे अपूर्वलाभ से अन्त में थोड़े काल में ही मोक्ष भी प्राप्त हो जाता है। इस पर धनसार्थवाह तथा शालिभद्रआदि का दृष्टान्त जानना। २ न्यायोपार्जित द्रव्य और कुपात्रदान इन दोनों का योग होने से दूसरा भंग होता है। यह पापानुबंधिपुण्य का कारण होने से इससे किसी किसी भव में विषयसुख का पूर्ण लाभ होता है, तो भी अन्त में उसका परिणाम कड़वा ही उत्पन्न होता है। जैसे किसेचनक : ____ एक ब्राह्मण ने लाख ब्राह्मणों को भोजन दिया जिससे वह कुछ भवों में विषयसुख भोगकर अत्यन्त सुन्दर व सुलक्षण अवयवों को धारण करनेवाला सेचनक नामक भद्रजाति का हाथी हुआ। जिस समय उसने लाख ब्राह्मणों को जिमाया था, उस समय ब्राह्मणों के जीमते बचा हुआ अन्न एकत्रित कर सुपात्र को दान देनेवाला दूसरा एक दरिद्री ब्राह्मण था, वह सुपात्र दान के प्रभाव से सौधर्मदेवलोक में जाकर, वहां से च्यवकर पांचसौ राजकन्याओं से विवाह करनेवाला नंदिषेण नामक श्रेणिकपुत्र हुआ। उसे देखकर सेचनक को जातिस्मरण ज्ञान हुआ, तथापि अन्तमें वह प्रथम नरक में
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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