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श्राद्धविधि प्रकरणम् आयानुसार व्यय :
द्रव्य की प्राप्ति के प्रमाण में उचित व्यय करना चाहिए। नीतिशास्त्र में कहा है कि, जितनी द्रव्य की प्राप्ति हो, उसका एक चतुर्थभाग संचय करना, दूसरा चतुर्थभाग व्यापार में अथवा व्याज पर लगाना, तीसरा चतुर्थभाग धर्मकृत्य में तथा अपने उपभोग में लगाना और चौथा चतुर्थभाग कुटुम्ब के पोषण निमित्त व्यय करना। कोईकोई ऐसा कहते हैं कि—प्राप्ति का आधा अथवा उससे भी अधिक भाग धर्मकृत्य में लगाना और बाकी रहे हुए द्रव्य में शेष सर्व कार्य करना। कारण कि, एक धर्म के सिवाय इसलोक के शेष सर्वकार्य तुच्छ हैं। कई लोग कहते हैं कि उपरोक्त दोनों वचनों में प्रथम गरीब के तथा दूसरा धनवान के उद्देश्य से कहा है। जीवन और लक्ष्मी किसको वल्लभ नहीं? किन्तु अवसर पर सत्पुरुष इन दोनों को तृण से भी हलका समझते हैं।
यशस्करे कणि मित्रसङ्ग्रहे, प्रियासु नारीष्वधनेषु बन्धुषु। धर्मे विवाहे व्यसने रिपुक्षये, धनव्ययोऽष्टासु न गण्यते बुधैः ।।२।। यः काकिणीमप्यपथप्रपन्नामन्वेषते निष्कसहस्रतुल्याम्। काले च कोटिष्वपि मुक्तहस्तस्तस्यानुबन्धं न जहाति लक्ष्मीः ।।३।। १ यश का विस्तार करना हो, २ मित्रता करनी हो, ३ अपनी प्रियस्त्रियों के लिए कोई कार्य करना हो, ४ अपने निर्धन बान्धवों को सहायता करनी हो, ५ धर्मकृत्य करना हो, ६ विवाह करना हो, ७ शत्रु का नाश करना हो, अथवा ८ कोई संकट आया हो तो चतुरपुरुष धन व्यय की कुछ भी गीनती नहीं रखते। जो पुरुष एक काकिणी भी कुमार्ग में चली जाये तो एक हजार स्वर्णमुद्राएं गयीं ऐसा समझते हैं, और वे ही पुरुष योग्य अवसर आने पर जो करोड़ों का धन छूटे हाथ से व्यय करते हैं, तो लक्ष्मी उनको कभी भी नहीं छोड़ती है। जैसेकरकसर :
एक श्रेष्ठी की पुत्रवधू नयी विवाही हुई थी। उसने एक दिन अपने श्वसुर को दीवे में से नीचे गिरी हुई तैल की बूंदे अपने जूतों में लगाते देखा, इससे मन में विचार करने लगी कि, 'मेरे श्वसुर की यह कृपणता है कि काटकसर है?' ऐसा संशय होने से श्वसुर की परीक्षा करने का निश्चयकर एक दिन सिर दुःखने का बहाना करके वह सो रही तथा बहुत चिल्लाने लगी। श्वसुर ने बहुत से उपाय किये तब उसने कहा कि, 'पूर्व में भी कभी-कभी मेरे ऐसा ही दर्द होता था और वह सच्चे मोतियों का चूर्ण लेप करने से मिट जाया करता था।' यह सुनकर श्वसुर को बड़ा हर्ष हुआ। उसने तुरन्त मोती मंगाने की तैयारी की। इतने में ही बहूने यथार्थ बात कह दी।
धर्मकृत्य में खर्च करना यह लक्ष्मी का एक वशीकरण है। कारण कि, इसीसे वह स्थिर होती है। कहा है कि