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________________ श्राद्धविधि प्रकरणम् 203 मैंने भानुमती रानी का तील जाना उसी प्रकार ही यह बात भी मैं जानता हूं।' तदनन्तर शारदानन्दन गुरु और राजा का मिलाप हुआ, व दोनों जनों को अपार हर्ष हुआ...इत्यादि। पाप के भेद : इस लोक में पाप दो प्रकार का है। एक गुप्त और दूसरा प्रकट। गुप्त पाप भी दो प्रकार का है। एक लघुपाप और दूसरा महापाप। खोटे तराजू, बाट इत्यादि रखना यह गुप्त लघुपाप और विश्वासघात आदि करना यह गुप्त महापाप कहलाता है। प्रकट पाप के भी दो भेद हैं। एक कुलाचार से करना और दूसरा लोकलज्जा छोड़कर करना। गृहस्थ लोग कुलाचार से आरंभ समारंभ करते हैं तथा म्लेच्छ लोग कुलाचार से ही हिंसा आदि करते हैं वह प्रकट लघुपाप है; और साधु का वेष पहनकर निर्लज्जता से हिंसा आदि (पांच महाव्रतों का भंग) करे, वह प्रकट महापाप है। लज्जा छोड़कर किये हुए प्रकट महापाप से अनन्तसंसारीपना आदि होता है, कारण कि, प्रकट महापाप से शासन का उड्डाह आदि होता है। कुलाचार से प्रकट लघुपाप करे तो थोड़ा कर्मबंध होता है, और जो गुप्त लघुपाप करे तो तीव्र कर्मबंध होता है। कारण कि, वैसा पाप करनेवाला मनुष्य असत्य व्यवहार करता है। मन, वचन, काया से असत्य व्यवहार करना, यह बड़ा भारी पाप कहलाता है; और असत्य व्यवहार करनेवाले मनुष्य गुप्तलघुपाप तो करते ही हैं। ___असत्य का त्याग करनेवाला मनुष्य किसी समय भी गुप्तपाप करने को प्रवृत्त नहीं होता। जिसकी प्रवृत्ति असत्य की ओर हुई, वह मनुष्य निर्लज्ज हो जाता है, और निर्लज्ज हुआ मनुष्य स्वामी, मित्र और अपने ऊपर विश्वास रखनेवाले का घात आदि गुप्त महापाप करता है। यही बात योगशास्त्र में कही है। यथा एकत्रासत्यजं पापं, पापं निःशेषमन्यतः। द्वयोस्तुलाविधृतयोराद्यमेवातिरिच्यते ॥१॥ तराजू के एक पलडे में असत्य रखें, और दूसरी बाजू में सर्व पातक रखें तो दोनों से प्रथम ही तौल में अधिक उतरेगा। किसीको ठगना इसका असत्यमय गुप्तलघुपाप के अन्दर-समावेश होता है। इसलिए कभी भी किसीको ठगना न चाहिए। न्यायमार्ग से चलना यही द्रव्य की प्राप्ति करानेवाला एक गुप्त महामंत्र है। वर्तमान समय में भी देखते हैं कि न्यायमार्गानुयायी कितने ही लोग थोड़ा थोड़ा धनोपार्जन करते हैं, तो भी वे धर्मकृत्य में नित्य खर्च करते हैं। ऐसा होते हुए भी जैसे कुएँ का जल निकले थोड़ा, परन्तु कभी भी क्षय को प्राप्त नहीं होता, इसी प्रकार उनका धन भी नष्ट नहीं होता। अन्य पापकर्म करनेवाले लोग बहुत द्रव्योपार्जन करते हैं,तथा विशेष खर्च नहीं करते, तो भी मरुदेश के सरोवर की तरह वे लोग अल्पसमय में निर्धन हो जाते हैं। कहा है कि आत्मनाशाय नोन्नत्यै, छिद्रेण परिपूर्णता।
SR No.002285
Book TitleShraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayanandvijay
PublisherJayanandvijay
Publication Year2005
Total Pages400
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size8 MB
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